________________
छोटे राष्ट्रोंकी युद्ध-नीति
( लेखक - श्रीकाका कालेलकर)
हिटलरने
टिलरने कितना बड़ा अत्याचार किया है । -अयुध्यमान नार्वे पर आक्रमण करके उस देश पर उसने कब्जा कर लिया ! नार्वे के लोगों का कुछ भी कसूर नहीं था । उनका दोष एक ही था कि वे पागल होनेसे इनकार करते थे । उनका तटस्थ रहना न इंगलैंडकों पसन्द था, न जर्मनी को । जबरदस्त लोगोंका एक सिद्धान्त अंग्रेजीमें बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया गया है
Those who are not with us, are against us' (जो हमारे साथ नहीं हैं वे हमारे खिलाफ़ हैं । ) सत्ताभक्त इसीमें थोड़ा सुधार करके कहते हैं-""Those who are not under us, are against us.” (जो हमारे काबू में नहीं हैं वे हमारे दुश्मन हैं ।) नार्वेके कठिन काल में भी चर्चिल साहब उसकी हंसी करनेसे बाज नहीं आए। आप कहते हैं कि 'हम जब कहते थे, तब तुम हमारे साथ नहीं हुए। तुमने तटस्थ रहना मंजूर किया । अब भुगतिये उसका फल | !” हिटलर भी उनसे कहता होगा, “तुम्हारा तटस्थ रहना हमारे लिये खतरनाक है । तुम तटस्थ रह नहीं सकते । इंगलैंड आत्म-रक्षा के लिये तुम पर आक्रमण किये बिना नहीं रह सकता । देखो, ये सुरङ्ग तुम्हारे समुद्र में वे बोने लगे हैं । कहाँ रही तुम्हारी तटस्थता ? यह दुनिया या तो ईश्वर की रहे या शैतान की । इसमें तीसरा कोई भी रह नहीं सकता । या तो हमारे अधीन हो जाओ, या फिर हमारे विरोध में हो रहो । "
I
तमाम दुनियाका शस्त्रवाद एक मुखसे कहता है, ‘Woe to the neutrals ! (तटस्थोंका बुरा हाल है ! ) और दुनियाभर के तानाशाह
प्रतिध्वनित करते हुए कहते हैं, Woe to
इसी the small nationalities that dream
of an independent existence. ' ( जो छोटे छोटे देश आजाद रहना चाहते हैं उनकी कज़ा है !)
हम भी जरा अपने देशका इतिहास देखें | प्राचीन इतिहास नहीं, अंग्रेजों के आगमन के बादका ।
अंग्रेजों को अपनी फौज सिंघमें से लेजानी थी। सिंद्ध मीरोंका स्वतंत्र मुल्क था । अंग्रेजोंको अपनी फौज सिंधमें से लेजाने का कोई अधिकार नहीं था । सिंधके मीरोंने अंग्रेजोंका कोई भी नुकसान नहीं किया । उन्होंने अंग्रेजोंसे कहा, 'तुम्हारे झगड़े में हमें नहीं पड़ना है । हमें तटस्थ ही रहना है।' किन्तु अंग्रेजोंको अपनी फ़ौज लेही जानी थी उन्होंने कहा कि, 'अगर तुम हमारी आक्रमणकारी नीति में मदद नहीं करते, तो तुम हमारे दुश्मन हो' अंग्रेजोंने सर चार्लस् नेपीयरको हुक्म दिया कि वह सिंघपर धावा बोलदे और उस सूबेपर हमेशा के लिये कब्जा भी कर ले | और सिंध के मीरोंसे कहते, 'माफ़ कीजिये, राजअगर अंग्रेज जबरदस्ती अपनी फ़ौज लेजाते नीति में न्याय-अन्याय हमेशा नहीं देखा जा सकता। हमने जबरदस्ती तो की; किन्तु अब हमारा काम हो चुका है। आपका सिंध हड़प करनेका हमें कोई कारण नहीं है। आप अपने देश में अमन-चैन से राज कर सकते हैं' - तो भी हम उनकी बात समझ सकते। लेकिन बहाना मिलते ही - बल्कि असल बात तो यह थी कि बहाना नहीं; वरन् मौका मिलते ही- सर चार्लस्, नेपीयर ने सिंधपर कब्जा कर लिया। बेचारा