________________
१६.
अनेकान्त
[वैसाख, वीरनिर्वाण सं०२४६६
रहता है, जिसमें प्रतिमा स्थापित करने वालों और पटियोंके कागज-पत्रोंका अन्वेषण-प्राचीन प्रतिष्ठाचार्यका उल्लेख अवश्य रहता है। उसमें संघ, काल में वंशावलियों और कुलोंका इतिहास भाट-चारण गण, गच्छ, और जाति गोत्रादि भी लिखे रहते हैं। लोग रक्खा करते थे । प्रत्येक घरसे इन्हें व्याह शादीके नवीं-दसवीं शताब्दिसे इधर के ऐसे हजारों लेख संग्रह मौकों पर और दूसरे शुभ कार्यों पर बन्धी हुई दक्षिणा किए जा सकते हैं। कहीं कहीं उस समय के राजाओंका मिला करती थी। उसके बदलेमें वे लोग पीढ़ी दर की उलेख मिल जाता है । मध्यकालीन इतिहास पर पीढी यह काम किया करते थे। बुन्देलखण्ड में इन्हें इन लेखोंसे बहत प्रकाश पड़ सकता है। इन लेखोंके 'पटिया' कहते हैं। वंशावलीको पट्टावली भी कहते प्रकाशित हो जाने पर वर्तमान सभी जातियोंका इति- हैं। इन पट्टावलियोंके कारण ही शायद इनका नाम हास लिखा जा सकेगा, उन जातियोंका भी पता लगेगा 'पटिया' प्रसिद्ध हश्रा हे । इन लोगोंका अब पहन्तेके जो पहिले जैन धर्म धारण करती थीं परन्तु अब छोड़ समान सम्मान नहीं रहा. - इनको दक्षिणा भी लोग बैठीं हैं । इससे जैनाचार्योंकी भी. गण-गच्छादि-सहित नहीं देते, इसलिए अब यह जाति नष्ट प्राय है । गहोई एक सिलसिलेवार सूची समय-क्रमसे तैयार हो जायगी और परवार दोनों जातियों के पटिया' हैं जिनमेंस जो जैन साहित्यके इतिहास के लिए भी अत्यन्त उप- गहोइयोंके पटिये अब भी अपने पेशेसे किसी कदर योगी सिद्ध होगी।
चिपटे हुए हैं। बन्धुवर सियारामशरण गुप्त के पत्र इनके लेखोंके समक्ष होने पर हम बड़ी आसानीसे से मालूम हुआ कि गहोई जातिके पटिया कहते हैं कि बतला सकेंगे कि जातियोंका अस्तित्व कबसे है । इन- उनके पास 'गृहपतिवंशपुराण' है जिसमें गहोइयोंका का विकास और विस्तार किस क्रमसे हुआ, अठसखा, इतिहास है परवारजाति के पटियोंका भी अभीतक अस्तित्व चौसखा दो सखा आदि भेद कब हुए, असली गोत्र- है। बहुत सभव है कि उनके पास परवार वंश के सम्बन्धमें मूर आदि क्या थे, उनमें प्रसिद्ध और प्रभावशाली भी कोई पुस्तक हो । उनके पासके कागज़ पत्रों और पुरुष कौन कौन हुए और किस किस जाति की बस्ती पुरानी बहियोंकी छानबीन करनी चाहिए। उनके पासस किन किन प्रांतोंमें और कब तक थी।
और कुछ नहीं तो पुरानी वंशावलियाँ, किंवदन्तियाँ और ' ये लेख शुरूसे लेकर अब तक के संगृहीत किए मूर-गोत्रावलियाँ संग्रह की जा सकती हैं। मूगें और जाने चाहिए और सभी जातियों के होने चाहिए। इस खेड़ोंके सम्बन्धकी जानकारी भी उनसे मिल सकती है। कार्य में अन्य सब जातियोंका सहयोग भी वांछनीय
विविध सामग्री-अनेक भारतीय और यरोपियन
लेखकोंने जातियों के सम्बन्धमें बीसों ग्रन्थ लिखे है, जो ३ लेख और दान-पत्रादि संग्रह-प्रतिमाश्रोंके अंग्रेजीमें हैं । मर्दुशुमारीकी रिपोर्टोंमें भी जाति भेद अतिरिक्त मन्दिरोंको दिए हुए दानोंके भी सैकड़ों लेख
सम्बन्धी अध्याय रहते हैं, इसके सिवाय प्रत्येक जिले मिलते हैं । बहतसे इन्डियन एण्टिक्वेरी, एपिग्राफिाइ- के गैजेटियरों में भी वहाँकी जातियोंके विषयमें साधारण डिया श्रादि में प्रकाशित हो चुके हैं । वे सब भी संग्रह मा इतिहास और किंवदन्तियाँ लिखी रहती हैं, ये सब किये जाने चाहिए।
पुस्तकें संग्रह की जानी चाहिए। हिन्दीमें प्रथक प्रथा ४ ग्रन्थ-प्रशस्तियाँ और लिपि कराने वालोंकी जातियों पर और समग्र जातियों पर अनेक पुस्तकें प्रशस्तियाँ-प्रत्येक ग्रन्थके अन्तमें जो लेखकोंकी लिखी गई हैं। कुछ पुराण भी उपयोगी हो सकते हैं !
और ग्रन्थ लिखने वालोंकी प्रशस्तियाँ रहती हैं, उनमें इतिहासके अन्य ग्रन्थोंका संग्रह तो होना ही चाहिए। भी जातियोंका तथा दूसरी बातोंका परिचय रहता है। उनकी चर्चा करनेकी ज़रूरत नहीं। इन सबका संग्रह भी बहुत उपयोगी होगा।
Mr.