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वर्ष ३, किरण ७]
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परवार जातिके इतिहास पर कुछ प्रकाश
बतलाती हैं । यह संभव भी है। जैसा कि प्रारम्भमें वीर मन्त्री और सेनापति हुए हैं, जिससे यदि पोरवाड़ोंलिखा जा चुका है, बहुतसी वैश्य जातियाँ प्राचीन को क्षत्रिय कहा जाय तो अनुचित न होगा । गणों या संघोंकी अवशेष हैं और वे गण 'वार्ता- पोरवाड़ और परवार मूलमें एक ही हैं यह ऊपर शस्त्रोपजीवी' ये अर्थात् कृषि, गोपालन, वाणिज्य और सिद्ध किया जा चुका है। परन्तु परवारोंका इतिहास शस्त्र उनकी जीविकाके साधन थे । गणराज्य नष्ट हो अभी तक अन्धकारमें ही है। हम सिर्फ मंजु चौधरी जाने पर यह स्वाभाविक है कि उन्हें शस्त्र छोड़ देने नामक परवार वीरको ही जानते हैं जिन्होंने नागपुरके पड़े और केवल कृषि, गोपालन और वाणिज्य ही उन- भोंसला राजाको श्रोरसे उड़ीसा पर चढ़ाई की थी और की जीविकाके साधन रह गये। कालान्तरमें अहिंसा जिनके वंशके लोग अब भी कटकमें रहते हैं। .. की भावना तीव्र होने पर खेती करना भी उन्होंने छोड़
परवारोंके इतिहासकी सामग्री दिया, जिसके साथ साथ गोपालन भी चला गया और तब उनकी केवल वाणिज्यवृत्ति रह गई ।
लेख समाप्त करनेके पहले मैं अपने पाठकों के
समक्ष यह निवेदन कर देना चाहता हूँ कि साधन - इसके सिवाय इतिहासके विद्यार्थी जानते हैं कि प्रख्यात गुप्तवंश मूल में वैश्य ही था जिसमें समुद्रगुप्त,
सामग्रीकी कमीसे यह लेख जैसा चाहिये वैसा नहीं
लिखा जा सका । मित्रोंका अत्यन्त श्राग्रह न होता तो. चंद्रगुप्त जैसे महान् सम्राट हुए हैं । सम्राट हर्ष वर्धन भी
शायद मैं इसके लिखनेकी कोशिश भी न करता । वैश्य वंशके ही थे । ऐसी दशामें बहुतसी वैश्य जातियाँ
लिखते समय जिन जिन साधन-सामग्रियोंकी कमी यदि अपनेको क्षत्रियोंका वंशज कहती हैं, तो कुछ अनु
महसूस हुई, उनका उल्लेख भी मैं इसलिए यहाँ कर चित नहीं है । वृत्तियाँ तो सदा ही बदलती रही हैं।
देना चाहता हूँ कि परवार-समाज यदि वास्तवमें . प्राग्वाटों या पोरवाड़ोंमें तेरहवीं सदी तक बड़े २ योद्धाओंका पता लगता है । प्राचीन काल में इस जाति
अपना प्रामाणिक इतिहास तैयार करना चाहती है को 'प्रकटमल्ल' का विरुद मिला हुआ था। पाटण
तो इस ओर ध्यान दे और इस सामग्रीको लेखकोंके नरेश भीमदेव सोलंकी ( ई० स० १०२२ -१०६२)
लिये सुलभ कर दे। के प्रसिद्ध सेनापति विमलशाह पोरवाड़ ही थे जिन्हें
१ मूर-गोताक्लीका शुद्ध पाठ-इस समय मूर द्वादशसुर त्राणछत्रोत्पाटक (बारह सुलतानोंका छत्र
__ गोतोंके जो पाठ मिलते हैं वे बहुत ही भ्रष्ट हैं उनमें छीनने वाला ) कहा जाता था और जो भाबके परस्पर विरोध भी है । इसलिए जरूरी है कि पुराने २ प्रसिद्ध श्रादिनाथके मन्दिरके निर्माता थे। इसी तरह लिखे हुए 'सकेसरा' जगह जगहसे खोजकर संग्रह आबके जगत् प्रसिद्ध जैनमन्दिरोंके निर्माता वस्तुपाल किए जाँय और फिर उन सबका मिलान करके किसी तेजपाल (वि० सं० १२८८) भी पोरवाड़ ही थे, जो इतिहासज्ञ विद्वान्से एक शुद्ध पाठ तैयार कराया महाराजा वीरधवल बाघेलाके मन्त्री और सेनापति जाय । थे । ये जैसे वीर थे वैसे ही दाता और धर्मोद्योतक थे। २ प्रतिमा-लेख-संग्रह-प्राक प्रत्येक धातु इनके बादमें भी पोरवाड़ोंमें अनेक राजनीतिज्ञ और पाषाणकी प्रतिमाओंके श्रासन पर कुछ न कुछ लेख