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वर्ष ३, किरण • ]
परवार जातिके इतिहास पर कुछ प्रकाश
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हुई थीं। नगरकी स्त्रियाँ उनकी परवा किये बिना ऊपर- स्पष्ट प्रमाण है कि वर्तमान सरावगी गहोइयोंके पुरखा से निकल गई, परन्तु पटियोंके पूर्वज बीघा-पाडेकी श्रावक या जैन थे। पत्नी सम्मानपूर्वक बचकर निकली, इससे प्रसन्न होकर झाँसी, चिरगाँव श्रादिमें परवारों और गहोइयों में अम्बिकाने पांडेजीको स्वप्न में कहा कि मैं अन्य स्त्रियों- पक्की रसोईका व्यवहार 'अब तक है, यह भी इस बातका की अशिष्टताके कारण इम नगरीको नष्ट करने वाली सुबूत है कि पूर्वकालमें इन दोनों जातियोंमें घनिष्टता हूँ, तुमसे जितनी दूर भागा जा सके भाग जाओ। थी और इन दोनोंका मूल स्रोत एक ही होगा। पद्मा
आखिर पांडे जी अपने ग्यारह शिष्योंके साथ भाग वति नगरीसे. गोइयोंके निकलनेकी दन्तकथा भी इस निकले । श्रागे उन्हींकी सन्तान गहोई हुए और पौड़े बातको पुष्ट करती है। .... : . . .. जी की सन्तान पटिया । इस कथासे यह मालूम होता है परवारों, गहोइयों और अग्रवालोंके गोतोंकी समी कि परवारों के समान गहोई भी पद्मावती छोड़कर नता इस बातका भी संकेत करती है कि पर्वमें वैश्य बुन्देलखंडकी तरफ श्राबाद हुए थे और इन दोनों जाति एक ही थी और ये सब भेद 'स्थानस्थिविविशेजातियोंका बहुत पुराना सम्बंध है ।
षतः' बहुत बादमें हुए हैं। . .......... समस्त वैश्य जातियोंकी मौलिक एकता
परवारोंके मूर .. . गहोई और परवार जाति के नौ गोत्र एकसे होना ऊपर जो बारह गोत्र बतलाये गये हैं, उनके प्रत्येक के बहुत अर्थपूर्ण है । हमारे बहुतसे पाठक शायद यह न बारह बारह मूर बतलाये जाते हैं । इस तरह सब मिला जानते होंगे कि पूर्वकालमें गहोई भाई भी 'जैनधर्मके कर १४४ मूर हैं। अनुयायी थे । इस जातिके बनाये हुए कई जैन मंदि- गोत-मरोंका मिलान किये बिना परवारों में कोई रोंका पता लगा है । इसके सिवाय गहोइयोंका एक विवाह सम्बन्ध नहीं होता है, फिर भी दुर्भाग्य देखिए मूर या आँकना 'सरावगी' नामका है, जो इस बातका कि इन मूर-गोतोंकी एक भी प्रामाणिक सूची उनके
- पास नहीं है । एक तो उनके नाम ही अतिशय अपभ्रष्टे । ___ * प्रहार क्षेत्र (टीकमगढ़से १० मील पूर्व) में .
होगये हैं और दूसरे जो मूर एक सूचीमें एक गोत्रके श्रीशान्तिनाथकी प्रतिमाके आसन पर एक लेख वि.
अन्तर्गत है, वही दूसरी सूची में दूसरे गोत्रमें गिना गया सं०१२३७ का है। उसमें 'गृहपतिवंशसरोरुहसहस्ररश्मि' (गहोई वंश रूपी कमलके सूर्य) देवपालका वर्णन है
है। किसी गोत्रके मूर बाहरसे कम हैं और किसीके
ज्यादा। डावडिम, रकिया, पद्मावती, कुत्रा, मारू, जिन्होंने बाणपुर (अहारके १६ मील) में सहस्रकूट
खौना श्रादि मूर ऐसे हैं जो दो दो गोतोंमें आते है। नामका जैनमन्दिर बनवाया था, और फिर जिनके उत्तम पुरुषोंमेंसे एकने यह शान्तिनाथका मन्दिर बन हमारे सामने इस समय मूर-गोतोकी चार वाया और प्रतिष्ठा कराई । यह लेख प्रो. हीरालाल सूचियाँ हैं एक जैनमित्रके पौष सुदीर सं०१६ के अंक जैन द्वारा नागरी प्रचारिणी-पत्रिकामें प्रकाशित हो में प्रकाशित पं० नम्बप्रसाद शास्त्रीकी भेजी हुई, दूसरी
दो भिन्न सूचियाँ माधवदी' सं० १६' के नैनमित्रमें
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