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परवार जातिके इतिहास पर कुछ प्रकाश
वर्ष ३, किरण ७ ]
१००१ का है इसकी समृद्धि की अत्यन्त प्रशंसा की गई है। उसे ऊँचे गगनचुंबी भवनोंसे सुशोभित अनुपम नपर बतलाया है, जिसके राज़ मार्गोंमें बड़े बड़े घोड़े दौड़ते हैं, और जिसकी दीवारें चमकती हुई, स्वच्छ, शुभ्र और आकाश से बातें करती हैं ।
ग्वालियर राज्यका 'पदम पवाँया' नामक स्थान प्राचीन पद्मावती के स्थान पर बसा हुआ है । यह बहुत समय तक नाग - राजानोंकी राजधानी रही है ।
'पद्मावती पोरवाड़' परवारोंकी ही एक शाखा है, इस बातका प्रमाण पं० बखतरामजी कृत 'बुद्धिविलास'
नामक ग्रंथ के 'श्रावकोत्पत्ति प्रकरण' में भी मिलता है सात खाँप परवार कहावैं, तिनके तुमकौं नाम सुनावें । सक्खा फुनि हैं चौसक्खा, सह सक्खा फुनि हैं दो सक्खा । सोरठिया अरु गाँगज जानौ, पदमावतिया सप्तम जानौ । अर्थात् परवार सात खाँपके हैं - १ ठसखा, २ चौसखा ३ छहसखा, ४ दो सखा, ५ सोरठिया, ६ गांगज ७ और पदमावतिया । इनमें से पहले चार तो परवारों के प्रसिद्ध भेद हैं ही जिनमें से अब केवल ठसखा और चौसखा रह गये हैं और पदमावतिया से झांसी-आगरा लाइन पर देवरा स्टेशनसे कुछ दूर पर ग्वालियर राज्य में ।
* इसे मेरे मित्र तात्या नेमिनाथ पांगलने बहुत बरस पहिले बारसी टा उनके जैन मन्दिरसे लेकर भेजा था । उस समय मैंने एक नोट भी जैनहितैषी (भाग ६ अंक ११-१२ ) में प्रकाशित किया था। इस समय यह ग्रन्थ मेरे सन्मुख नहीं है। इसलिए यह नहीं कह सकता कि ग्रन्थ किस समयका बना हुआ है ।
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मतलब पद्मावती पौरवाड़ से है जो इस समय एक जुदी जाति है + । परवारोंसे दूर पड़ जानेके कारण ही कालान्तर में इसका परवार संम्वन्ध टूट गया होगा ।
पद्मावती पोरवाड़ों में जिस तरह 'पाँडे' हुआ करते है उसी तरह परवारों में भी हैं । पहिले शायद इनसे वही काम लिया जाता था, जो अन्य जैनेतर जातियों में ब्राह्मणोंसे लिया जाता है।
परवारोंके मूल- गोत्रों में भी 'बामल्ल' गोत्रका एक मूर 'पद्मावती' नामका है। । जान पड़ता है इस मूर के लोग ही दूर चले जाने पर एक स्वतंत्र जातिके रूप में परिणत होगए होंगे। जो थोड़े लोग परवारोंके साथ रह गये, वे पद्मावती मूर वाले कहलाते हैं। जैसा कि ऊपर कहा है यह नाम पद्मावती नगरीके नामसे ही पड़ा होगा ।
• जातियोंके इतिहास में ऐसी बहुत-सी जातियाँ है जो पहले एक बड़ी जातिके अन्तर्भूत गोत्र रूपमें थीं और फिर पीछे एक अलग जाति बन गई । ..
+ दि० जैन डिरेक्टरीके अनुसार पद्मावती पोर - वाड़ोंकी जन संख्या ११५३१ थी। इनका एक जत्था सौ दो सौ वर्ष पहले शायद बघेरवालोंके ही साथ बरारमें जा बसा था जो भाषा वेष आदिमें बिलकुल दक्षिणी हो गया । इससे उत्तरभारत वालोंका इनके साथ विवाह सम्बन्ध टूट गया था; जो अब जारी किया गया है ।
* हमारे गांवमें एक पड़े परिवार है, अमरावती में भी एक पांड़े हैं । अन्यत्र भी इनके घर होंगे ।
+ एक सूची में कासा गोत्रका मूर भी पद्मावती लिखा है । कोइल्ल गोत्रके एक मूरका नाम 'पद्मावती डिम' भी है ।