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भनेकान्त
[वैसाख, वीरनिर्वाण सं०२४६६
- सोरठिया परवार
संका। पर इससे यह पता लगता है कि महा-कौशल में . 'सोरठिया पोरवाड' नामकी जाति · गुजरातमें है ।
जबलपुर, नरसिंगपुर, सिवनी आदिकी तरफ परवार दो सोरठमें बसनेके कारण इसका यह नाम पड़ा है। इस
स्थानोंसे जाकर श्राबाद हुए हैं । जो सीधे बुन्देलखंडसे जातिमें जैन और बेष्णव दोनों धर्मोके अनुयायी हैं ।
आये वे बुन्देलखंडी और जो गढ़ा (जबलपुरके पास) इन्हें परवारोंकी एक खाँप बतलाया है और इस तरफ
से आये वे गढ़ावाले । गढ़ा पहले समृद्धिशाली नगर ये पोरवाड़ ही माने जाते हैं, इससे भी परवार और
था । उसके उजड़ जाने पर इन्हें नीचेकी तरफ आना पोरवाड़ पर्यायवाची मालूम होते हैं ।
पड़ा होगा।
___ 'बुन्देलखंडी' और 'गढ़ावाले' यह भेद परवारोंकी जाँगड़ा परवार
पड़ौसिन गहोई जातिमें भी है । वैश्य होनेके कारण यह अब शेष रहे 'गाँगज' सो मेरा ख्याल है कि जाति भी साथ साथ ही नई जगहोंमें आबाद हुई होगी। लिखने वाले की भलसे यह नाम अशुद्ध लिखा गया है। गहोइयोंमें इन दोनों दलोंमें बेटी व्यवहार तक बन्द हो संभवतः यह 'जाँगड़' होगा जो 'जाँगड़ा पोरवाड़ों' के गया था जो बड़े आन्दोलनके बाद अब जारी हुआ लिए प्रयुक्त हुअा है। ___ जाँगड़ा पोरवाड़ बैष्णव और जैन दोनों हैं। परवारों और पोरवाड़ोंके बाकी उपभेद चम्बल नदीकी छाया में रामपुरा, मन्दसोर मालवा परवारोंकी सात खाँपे ऊपर बतलाई जा चुकी हैं। तथा होल्कर राज्य में वैष्णव जाँगड़ा और बडवाहा उनमें से दोसखे छहसखे समाप्त होकर दो खाँपे अठ नीमाडके आसपास तथा कुछ बरारमें जैन जाँगडा सखा और चौसरवा रह गई हैं । चौसखे भी अब अठरहते हैं जो सिर्फ दिगम्बर सम्प्रदायके ही अन्यायी हैं। सखोंमें मिल रहे हैं । तारनपंथी समैया उपजातिका ____ जोधपुर राज्यका उत्तरी भाग जिसमें नागौर आदि जिक्र ऊपर किया जा चुका है ! इसका सम्बन्ध भी परगने हैं 'जांगल देश' कहलाता था। शायद इसी अब परवारोंसे होने लगा है और अब सिर्फ एक पन्थके कारणसे ये जाँगड़ा कहलाये होंगे और मेवाइसे निकल रूपमें ही इसका अस्तित्व रह गया है। कर पहले उधर बसे होंगे।
* श्री मणिलाल बकोर भाई ग्यासके पास संवत् ___ इनका रहन-सहन और आचार-विचार परवार १७०० के आस पास का लिखा हुआ एक पाना है जातिसे बहुत कुछ मिलता-जुलता है। दूसरोंके हाथसं जिसमें राजौर जातिके । बड़ी सखा, २ लहुड़ी सखा, खाने-पीनेका इन्हें भी बड़ा परहेज है । रंगरूपमें भी ये ३ चउसखा, ४ द्विसखा और ५ राजसखा ये पाँच परवारों के समान है।
अन्तर्भेद बतलाये हैं। 'जैन-सम्प्रदाय-शिक्षा' के अनु.
सार इस जाति का उत्पत्ति-स्थान 'राजपुर' बतलाया बुन्देलखण्डी और गढ़ावाल है। क्या पूर्वकालमें परवार जातिसे इस जातिका भी परवारोंका सबसे पिछला भेद बुन्देलखंडी और कुछ सम्बन्ध था ? कहीं 'पुर' का ही दूसरा नाम 'राजगढ़ावाल है जो पृथक् जातिके रूपमें परिणत न हो पुर' न हो ?