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अनेकान्त
[ वैसाख, वीरनिर्वाण सं० २४६६
जी ने और 'जैन-सम्प्रदाय - शिक्षा' के लेखक यति श्रीपाल जीने पोरवाड़ों का मूल स्थान 'पारेवा' या 'पारा' पोरवाड़ोंकी उत्पत्तिके संबंधकी कथाएँ और नगर बतलाया है मगर वह कहाँ पर है इसका कुछ गलत धारणाएँ पता नहीं दिया। संभव यही है कि 'पुर' सबका ही बिगड़कर 'पारा' या 'पारेवा' बन गया हो। मेवाड़ से बाहर फैलाव
प्रवृत्ति राजस्थानी और मारवाड़ी लोगों में है उतनी और किसी में नहीं ।
प्राग्वाट और पौरवाड़ोंकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें अनेक कल्पित कथायें 'श्रीमालीपुराण' और 'विमल - प्रबन्ध' आदि ग्रन्थों में मिलती हैं। परन्तु वे सब शब्दों
अर्थ परसे ही गढ़ी गई जान पड़ती हैं। जब लोग किसी जाति के मूल इतिहासको भूल जाते हैं, तब कुछ न कुछ कहने के लिए संभव असंभव कथायें रच डालते हैं । उन्हें क्या पता कि मेवाड़का एक नाम 'प्राग्वाट' भी था और वहाँ कोई 'पुर' नामक नगर था । उदाहरण के लिये एक कथा देखिये
जब लक्ष्मीजीको श्रीमाल नगरकी समृद्धिकी चिंता हुई, तब विष्णु भगवानने उनके मनकी बात जानकर ६० हज़ार वणिकोंको श्रीमाल नगर में दाखिल किया। तब उनमें से जो पूर्व दिशामें बसे, वे प्राग्वाट कहलाये । 'प्राग' का अर्थं पूर्व होता है और वाटका दिशा, स्थान आदि । बस शब्दार्थ में से ही कथा बन गई ।
गरज यह कि इस तरहकी कथाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिए । प्रायः सभी जातियों के सम्बन्ध में इस तरह की अद्भुत अद्भुत कथायें प्रचलित हैं ।
'महाजन - वंश मुक्तावली' के लेखक यति रामलाल
t चोलुक्य या सोलकी राज्यवंश के विषय में भी ऐसी ही एक कथा शब्द परसे गढ़ी गई है। 'लुक' शब्दसे. चौलुक्य बन सकता है और 'चुलुकका अर्थ होता है, चुल्लू! ब्रह्माकी ने या किसी देवताने चुलू भर पानी डालकर जिला दिया बस उसीसे चौलुक्य वंश उत्पन्न हो गया ।
जातियों के एक स्थान से दूसरे स्थानको जाने के अनेक कारण होते हैं । उनमें मुख्य है आर्थिक कारण ।
अक्सर प्राचीन समृद्ध नगर राजनीतिक उथलपुथलोसे, श्राक्रमणकारियोंके उपद्रवोंसे और प्रकृति-प्रकोप से उजड़ जाते हैं। जहाँ जीविका के साधन नहीं रहते तब जातियाँ वहाँ से उठ कर दूसरे समृद्विशाली नगरों या प्रान्तों में चली जाती है। वर्तमान स्थानकी अपेक्षा दूसरे स्थानोंमें लाभकी अधिक श्राशासे भी गमन होता है । अक्सर प्रतापी राजा नये नगर बसाते हैं और उनमें पुरुषार्थियों को बुलाकर बसाते हैं। ऐसे ही किसी कारण से पोड़वाड़ या परवार जातिने मेवाड़से बाहर क़दम रक्खा होगा । जहाँ जहाँ जाकर ये बसे वहाँ वहाँ इन्होंने अपना परिचय प्राग्वाट या पोरवाड़ विशेषण के साथ दिया और तभी से ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए । पद्मावती - पुरवार परवारोंकी एक शाखा
ऐसा जान पड़ता हैं कि प्राग्वाटों या पोवाड़ोंका एक दल पद्मावती नगरी में भी आकर बसा था । पीछे जब यह महानगरी ऊजड़ हो गई, और इस कारण उसे वहाँसे अन्यत्र जाना पड़ा तब उस दलका नाम पद्मावती पोरवाड़' या ‘पद्मावती पुरखार' हुना ।
पद्मावती किसी समय बड़ी ही समृद्धिशाली नगरी थी । खजुराहाके एक शिलालेखमें जो ईस्वी सन्
+ देखो इण्डियन एक्टिक्वेरी पहवाखंड पृ०१४३