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अनेकान्त
श्रीमाली उसपालाश्च पौरवादाश्च नागराः । दिक्पालाः गुर्जराः मोदाः ये वायुवटवासिनः ।। वायुपुराण इसमें वायुवट अर्थात् वायड ( पाटण के समीप ) में रहने वाली वैश्य जातियोंके नाम बतलाए हैं-श्रीमाली, उसपाल (सवाल), पौरवाड़ ( पोरवाड़), नागर दिक्पाल (. डीसावाल या दीसावाल ), गुर्जर और मोढ़ |
यह बात विद्वानोंने मान ली है कि गुजरातकी 'पौरवाट ' जाति पोरवाढ़ ही है, वहांके पोरवाड़ भी. अपनेको 'पोरपाट' या 'पौरवाट ' मानते हैं ।
ऐसी दशा में यदि यह अनुमान किया जाय कि पोरवाड़ और परवार मूलमें एक ही थे तो वह अत्युक्त न होगा । और यह सिद्ध हो जाने पर कि 'पोरवाड़' और 'परवार' एक ही हैं, 'पोरवाड़ों' का इतिहास एक तरह से परवारों का ही इतिहास जाता है और पोरवाड़ों की उत्पत्ति जहाँसे हुई है वहांते ही परवारों की उत्पत्ति सिद्ध हो जाती है। अब हम यह देखेंगे कि विद्वानोंका पोरवाड़ों की उत्पत्तिके विषय में क्या कहना है ।
परवारों और पोरवाड़ोंका मूल स्थान पोरवाड़ोंका पुराना नाम 'पौरपाट' 'पौरवाट' और प्राग्वाट मिलता है । इस सम्बन्धमें सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा अपने 'राजपूतानेका इतिहास' की पहिली जिल्द में लिखते
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[वैसाख, वीर निर्वाण सं० २४६६
" करनबेल (जबलपुर के निकट) के एक शिला - लेखमें प्रसंगवशात् मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा हंसपाल, वैरिसिंह और विजयसिंहका वर्णन आया है जिसमें 'उनको 'प्राग्वाट' का राजा कहा है। अतएव 'प्रावाद' मेवाड़का ही दूसरा नाम होना चाहिए । संस्कृत-शिलालेखों तथा पुस्तकों में 'पोवाड़' महाजनोंके लिए 'प्राग्वाट' नामक प्रयोग मिलता है और वे लोग अपना निकास मेवाड़के 'पुर' नामक कस्बेसे बतलाते हैं जिससे सम्भव है कि प्राग्वाट देशके नाम पर वे अपनेको प्राथवाट वंशी कहते रहे हो ।”
हम विभिन्न प्रतिमा-लेखोंसे ऊपर सिद्ध कर चुके हैं कि 'परवार' शब्द में जो 'वार' प्रत्यय है वह 'वाट' या 'पाट' शब्दसे बना है जिसका प्रचलित अर्थ होता है। 'रहनेवाले' । इस तरह 'पौरबाट ' शब्दका अर्थ 'पौरके रहनेवाले' होता है। मेरे ख्यालसे इसी पुर नामसे 'पौर' बन गया है और परवार और पोरवाड़ लोग मूलमें इसी 'पुर' के रहनेवाले थे । 'पौरपाट' का अर्थ 'पुरकी तरफ भी लिया जा सकता है । 'पुर' गाँव जिसका कि ऊपर जिक्र है, अब भी मेवाड़ में भीलवाड़े के पास एक क़स्बा है जो किसी समय बड़ा नगर था ।
* यह उद्धरण श्री मणिलाल बकरभाई व्यास लिखित श्रीमालीभन! 'ज्ञातिभेद' नामक पुस्तक परसे लिया गया है।
कभी कभी शब्दों के दुहरे रूप भी बना लिये जाते हैं जैसे 'नीति' शब्दसे 'नैतिकता' । 'नीति' से 'नैतिक' बना और फिर उसमें भी 'ता' जोड़कर 'नैतिकता' बनाया गया यद्यपि 'नीति' और 'नैतिकता' के अर्थ एक ही हैं। इसी तरह मालूम होता है 'पुर' से भी 'पौर' बनाकर उसमें 'वाट' या 'पाट' लगा लिया गया जबकि 'पुर' के आगे 'घाट' या 'पाट' लगा देनेसे भी काम चल सकता था ।
पर यदि 'पुर' का पौर न कर सीधा ही उसमें 'वाट' या 'पाट' प्रत्यय जोड़ दें तो 'पुरवाट ' 'पुरवाड़ '