Book Title: Anekant 1940 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ वर्ष , किरण प्रभाचन्द्रका तत्वार्थ सूत्र ४३१ सातवाँ अध्याय वाले अगले पाँच सूत्र नहीं दिये । मैत्र्यादयश्चतस्रः॥४॥ हिंसादिपंचविरतिव्रतं ॥१॥ 'मैत्री आदि चार भावनाएँ और हैं।' 'हिंसादिपंचकसे विरक्त (निवृत्त) होना व्रत है।' यहाँ 'श्रादि' शब्दसे आगमनिर्दिष्ट प्रमोद, कारुण्य हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्म और परिग्रह ये पंच और माध्यस्थ्य नामकी तीन भावनात्रोंका संग्रह किया पाप कहलाते हैं । इनसे निवृत्त होना ही 'व्रत' है, और गया है। मैत्री सहित ये ही चार प्रसिद्ध भावनाएँ हैं । इसीलिये व्रतके अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य उमास्वातिने 'मैत्रीप्रमोद' नामक सूत्र में इन चारोंका और अपरिग्रह ऐसे पाँच भेद हैं । यह सूत्र और उमा- नाम सहित संग्रह किया है । स्वातिका 'हिंसानृतस्ते याब्रह्म परिग्रहेभ्यो विरतिद्वतं' श्रमणानामष्टाविंशतिर्मूलगुणा: ॥५॥ सूत्र दोनों एक ही टाइप और श्राशयके हैं। उमास्वाति _ 'श्रमणोंके अट्ठाइस मूलगुण हैं।' ने प्रसिद्ध पाँचों पापों के नाम दिये हैं, यहाँ हिंसाके साथ इस आशयका कोई सूत्र उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्र शेषका 'पादि' शब्दके द्वारा संग्रह किया गया है। में नहीं है । इसमें जैन साधुओंके मूल गुणोंकी जो २८ महाऽणु* भेदेन तद्विविधं ।। २ ॥ संख्या दी है उसमें मूलाचारादि प्राचीन दिगम्बर ग्रंथों 'वह व्रत (व्रतसमूह ) महाव्रत और अणुव्रतके के कथनानुसार अहिंसादि पंच महाव्रत, ईर्यादि पंच भेदसे दो प्रकारका है।' समितियां, पाँचो इन्द्रियोंका निरोध, सामायिकादि छह ___यह सूत्र उमास्वाति के दूसरे सूत्र ‘देशसर्वतोऽणु आवश्यक क्रियाएँ, अस्नान, भूशयन, केशलोंच, अचेमहती' के समकक्ष है और उसी अाशयको लिये हुए लत्व ( ननत्व ), एकभुक्ति, ऊर्ध्वभुक्ति ( खड़े होकर है । इसके और पूर्व सूत्र के अनुसार महाव्रतों तथा अ- भोजन करना और अदन्तघर्षण नामके गुणोंका समाणुव्रतोंकी संख्या पाँच पाँच होती है । वेश है। तहााय भावनाः पंचविंशतिः ॥ ३ ॥ श्रावकाणामष्टौ ॥६॥ 'उन (व्रतों) की दृढ़ताके लिये पच्चीस भावनाएं हैं। 'श्रावकोंके मूलगुण पाठ हैं।' यह सूत्र उभास्वाति के 'तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पंच अाठ मूल गुणोंके नामोंमें यद्यपि प्राचार्यों में कुछ पंच' सूत्र (नं ० ३) के समकक्ष है और उसीके श्राशय मत भेद पाया जाता है, जिसके लिये लेखकका लिखा को लिये हुए है। वहाँ प्रत्येक व्रतको पाँच पाँच भाव- हुश्रा 'जैनाचार्योका शासन-भेद' नामका ग्रंथ देखना नाएँ बतलाई हैं, तब यहाँ उन सबकी एकत्र संख्या चाहिये । परन्तु यहाँ च कि व्रती श्रावकोंका अधिकार है पच्चीस दे दी है । दिगम्बर पाठानुसार उमास्वाति के इसलिये आठ मूलगुणों में स्वामी समन्तभद्र-प्रतिपादित अगले पाँच सूत्रों में उनके नाम भी दिये हैं, परन्तु यहाँ पाँच गुणवतों और मद्य-माँस-मधुके त्यागको लेना संख्या के निर्देशसे उनका संकेतमात्र किया गया है। चाहिये । इस आशयका भी कोई सूत्र: उमास्वातिके श्वेताम्बर सूत्रपाठमें भी ऐसा ही किया गया है-नामों- तत्त्वार्थसूत्र में नहीं है । . * ऽनु * श्रवणा | मूलगुणा।

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