Book Title: Anekant 1940 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ वर्ष ३, किरण ७ ] 'पहले दो (भार्त, रौद्र ) ध्यान संसार के कारण प्रभाचन्द्रका तत्त्वार्थसूत्र कुल समकक्ष है । दोनों एक ही श्राशयको लिये.. हुए हैं । हैं ।' 'दूसरे दो (धर्म्य, शुक्ल) मोचके कारण हैं ।' उमास्वाति ने इन दोनों सूत्रोंके स्थान पर 'परे मोच'हेतू' नामका एक ही सूत्र रक्खा है और उसके द्वारा दूसरे दो ध्यानोको मोक्षका हेतु बतलाया है, जिसकी सामर्थ्य से पहले दो ध्यान स्वतः ही संसारके हेतु हो जाते हैं । यहाँ स्पष्टतया संसार और मोक्षके हेतुओं का अलग अलग निर्देश कर दिया है । पुलाकाद्याः † पंचनिर्ग्रन्थाः ॥ ७ ॥ 'पुलाक आदि पाँच निर्मन्थ हैं।' यहाँ पाँचकी संख्याके निर्देश पूर्वक 'आदि' शब्दसे श्रागमप्रसिद्ध बकुश, कुशील निर्ग्रन्थ और स्नातक नामके चार निर्ग्रन्थों का किया गया है । उमा स्वातिने 'पुलाक-मकुश-कुशील- निर्व्रन्थ- स्नातका निर्मन्था:' इस सूत्र में पाँचोंका स्पष्ट नामोल्लेख किया है। इति वृहत्प्रभा चन्द्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे नवमोध्याय ॥ ९ ॥ 'इस प्रकार वृहत्प्रभा चन्द्रविरचित तस्थार्थ सूत्रमें है, क्योंकि वहां धर्मास्तिकायका प्रभाव है।' नवाँ अध्याय समाप्त हुआ ।' दसवां अध्याय मोहये घातित्रयापनोदात्केवलं ॥ १ ॥ 'मोहनीय कर्मका चय होने पर तीन घातिया कर्मों ज्ञानावरण दर्शनावरण, अन्तराय - के विनाशसे केवल ज्ञान होता है।' यह सूत्र उमास्वातिके 'मोहल्यात् ज्ञानदर्शनावरणान्तरायचयाञ्च केवलम्' इस प्रथम सूत्रके बिल +द्या 224 अशेषकर्मक्षये मोक्षः ॥ २ ॥ 'सब कर्मोंका चय होने पर मोच होता है।' इस सूत्र के स्थान पर उमास्वातिका दूसरा सूत्र 'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोदोमोचः जिसमें 'बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां यह कारमा निर्देशात्मक पद अधिक है । और उसके द्वारा यह सूचित किया गया है कि शेष कर्मोंका विनाश बन्धके हेतु के प्रभाव और संचित कर्मोंकी निर्जरासे होता है । तत ऊर्ध्व गच्छत्या लोकांतात ॥ ३ ॥ 'तत्पश्चात ( मोचके अन्तर) मुक्त जीव लोकके अन्त तक गमन करता है ।' ... यह सूत्र उमास्वातिके पांचवें सूत्र 'तदनन्तर मुर्ध्वं गच्छत्याढोकान्तात् के बिल्कुल समकक्ष है तथा एकार्थक है और उससे तीन अक्षर कम हैं । ततो न गमनं धर्मास्तिकायाभावात् ॥ ४ ॥ 'लोकके अन्तिम भागके परे अलोक में गमन नहीं यह सूत्र उमास्वातिके‘धर्मास्तिकायाभावात' सूत्रके समकक्ष है - मात्र 'ततो न गमनम्' पदोंकी विशेषताको लिये हुए है, जो अर्थको स्पष्ट करते हैं । क्षेत्रादिसिद्धभेदाः साध्याः ॥ ५ ॥ * श्वे० सूत्र पाठ में यह सूत्र दो सूत्रों में विभक्त है। इसका पहला पद दूसरा सूत्र और शेष दो पद 'विप्रमोक्षो' के स्थान पर 'क्षयो' पदकी तबदीलीके साथ तीसरा सूत्र है । कन्या । *कायत्वात् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60