Book Title: Anekant 1940 05
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ अनेकान्त [वैसाख, वीर निर्वाण सं० २४६६ ४४२ महाभारतके शान्तिपर्वमें भी यही बात कही गई रखें और अपने दलको औदीच्य कहें ® । कुछ जातिहै । परन्तु इस समय भारतवर्ष में सब मिला कर याँ सामाजिक कारणोंसे बन गई हैं जैसे प्रत्येक जाति २७३८ जातियाँ हैं । अब प्रश्न यह होता है कि मूलके के दस्सा, बीसा, पाँचा श्रादिभेद और परवारों के उक्त चार वर्षों में से ये हज़ारों जातियाँ कैसे बन गई ?, चौसखे, दोसखे आदि शाखायें । कुछ जातियाँ विचार इस विषयमें इतिहासकारोंने बहुत कुछ छानबीन की है। भेदसे या धर्मसे बन गई हैं जैसे वैष्णव और जैन; खंडेहम यहाँ जाति बननेके कारण बहुत ही संक्षेपमें बत- लवाल, श्रीमाल, पोरवाड़, गोलापूरव श्रादि । लाएँगे। पेशोंके कारण बनी हुई भी बीसों जातियाँ हैं, जैसे सुनार, लुहार, धीवर, बढ़ई, कुम्हार, चमार आदि । - कुछ जातियाँ तो भौगोलिक कारणोंसे-देश प्राँत- इन पेशेवाली जातियों में भी फिर प्राँत, स्थान, भाषा नगरोंके कारण बनी हैं । जैसे ब्राह्मणोंकी औदीच्य, श्रादिके कारण सैकड़ों उपभेद हो गये हैं । कान्यकुब्ज, सारस्वत, गौड़ आदि जातियाँ और वैश्यों ___ सुप्रसिद्ध इतिहासकार स्वर्गीय काशीप्रसाद की श्रीमाली, खण्डेलवाल, पालीवाल या पल्लीवाल, जायसवालने. अपने 'हिन्दू-राजतन्त्र' नामक यन्थम श्रोसवाल, मेवाड़ा, लाड आदि जातियाँ । उदीची बतलाया है कि कई जातियाँ प्राचीन कालके गणतंत्रों अर्थात् उत्तर दिशाके औदीच्य, कान्यकुब्ज देशके या पंचायती राज्योंकी अवशेष हैं, जैसे पंजाब के अरोड़े कान्यकुब्ज या कनबजिया, सरस्वती तटके सारस्वत (अरट्ट) और खत्री (क्सपोई) और गोरखपुर श्रा जमगढ़ और गौड़ देश या बंगालके गौड़ । इसी तरह श्रीमाल जिले के मल्ल आदि । अभी अभी डाक्टर सत्यकेतु विद्यानगर जिनका मूल स्थान था वे श्रीमाली कहलाये, जो नागवाजानिरनिवास मिट कि ब्राह्मण भी हैं, वैश्य भी हैं और सुनार भी हैं। इसी कि अग्रवाल लोग 'आग्रेय' गणके उत्तराधिकारी हैं । तरह खंडेलाके रहनेवाले खंडेलवाल, पालीके रहनेवाले ये गणतंत्र एक तरह के पंचायती राज्य थे और अपना पालीवाल या पल्लीवाल, अोसियाके श्रोसवाल, मेवाड़ के शासन आप ही करते थे। कौटिल्यने अपने अर्थ-शास्त्र मेवाड़ा, लाट (गुजरात) के लाड अादि । यहाँ यह में इन्हें 'वार्ताशस्त्रोप नीवी' बतलाया है । 'वार्ता' का बात ध्यान में रखने योग्य है कि जब किसी राजनीतिक अर्थ कृषि, पशुपालन और वाणिज्य है । ये तीनों कर्म या धार्मिक कारणसे कोई समूह अपने प्राँत या स्थानका वैश्योंके हैं । इसके साथ शस्त्र धारण भी वे करते थे । परिवर्तन करके दूसरे स्थानमें जाकर बसता था, तबसे ये अनहिलवादाके सोलंकी राजा मूलराज (ई. नाम प्राप्त होते थे और नवीन स्थानमें स्थिर-स्थावर हा ११११६) ने यज्ञके लिये जिन ब्राह्मण परिवारों को जाने पर धीरे धीरे उनकी एक स्वतंत्र जाति बन जाती उत्तर भारतसे बलाकर अपने यहाँ बसाया था, उन्हें ही थी। उदीची या उत्तरके ब्राह्मणोंका दल जब गुजरात औदीच्य कहते हैं। में आकर बसा तब यह स्वाभाविक था कि वह अपने x इनका उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलता है, जैसे अपने ही दल के लोगोंके साथ सामाजिक सम्बन्ध परन्तु वह केवल पेशेकी पहचान के रूपमें, वर्तमान ॐ शांतिपर्व भ० १८८ श्लोक १०। जातिरूपमें नहीं । जैसे यूरोपके लुहार बढ़ई श्रादि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60