Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

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Page 17
________________ परब्रह्म, ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः-इति(अध्यात्मसारे), तथा-यः सर्वत्राऽनभिस्नेहस्तत्तत् प्राप्य शुभाशुभम् । नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता-इति (भगवद्गीतायाम्)। उपसंहरति विज्ञाय परमज्योति-र्माहात्म्यमिदमद्भुतम्। यः स्थैर्य याति लभते, स यशोविजयश्रियम् ॥ २५ ॥ न ह्युपायस्थैर्यविरह उपेयोपगमः सम्भवीति यतितव्यमत्रेत्यत्रोपदेशसर्वस्वम् । यशोविजय इत्यत्र ज्योतिःकृन्नामापि । मिथ्याऽस्तु दुरुक्तं मम । शोधयन्तु बहुश्रुताः । कृतिरियमाचार्यकल्याणबोधेर्नभोभयशून्यनयने (२०७०) वैक्रमेऽब्दे राधासितद्वितीयायां करुणासागरश्रीवीरतीर्थे श्रीपरिमलजैनसो राजनगरे सम्पन्नेति शम् । १. यथोक्तमन्यत्र-समेन हि स्यादुपमाभिधानं, न्यूनोऽपि ते नास्ति कुत समानः-इति (सिद्धसेनीद्वात्रिंशिकायाम्)। २. विषयेष्वित्यत्र पाठ्न्तरम् । ३. विस्तरार्थिभिर्विलोक्यतां गुर्जरविवेचनम्-परमोपनिषद् । (देवधर्मपरीक्षाऽऽख्यग्रन्थेन संयुतोऽस्त्ययं ग्रन्थः) 15

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