Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ “श्री सोहमसामि कहिउँ, जंबु आगलि सार; आर्द्रकुमार ऋषिनउं भलउं, सूयगडांगई अधिकार.” ४ "ते हुं आणीश तिहां थकी, वृत्ति थकी सुविशेषि; उपदेशचिंतामणी प्रमुख, ग्रंथचरित्र सब देखि" ५ श्री सूयगडांगसूत्रनी वृत्ति, ए अधिकार वखाणिउ, वली उपदेशचिंतामणी मांहिथी, मे इंहा विस्तार आणिउ रे...४ १) श्री सूत्रकृतांग सूत्र ए ११ अंगमां बीजं अंग छे. तेमां बे श्रुतस्कंध अने ३६,००० पद छे. तेना टीकाकार श्री शीलंकाचार्य छे. प्रस्तुत कथानो अधिकार बीजा श्रुतस्कंधना “आर्द्रकीय” नामना छठा अध्ययनमांथी लेवामां आव्यो छे. २) “उपदेशचिंतामणि” नामनो अतिमनोहर ग्रंथ विक्रम संवत १४३६ मां रचायेलो छे. आ ग्रंथनी रचना जैन आगमोना रहस्योना पार पामेला तथा अतिअद्भुत कवित्वशक्ति धारण करनारा श्री जयशेखरसूरिजीए करेली छे. तेओ अंचलगच्छमां थयेला श्री महेंद्रप्रभसूरिजीना त्रण शिष्योमांना वचला शिष्य हता. तेओ लगभग विक्रम संवत् १४२० थी १४७५ सुधीना समयमा विद्यमान हता. ते दरम्यान तेमणे प्रबोधचिंतामणी, जैनकुमारसंभव महाकाव्य, धम्मिलचरित्र तथा उपदेशचिंतामणी (मूळ तथा टीका सहित) नामना ग्रंथो रचेला छे. आ ग्रंथोनी रचना जोतां तेमनुं अध्यात्मज्ञान, आगमोनुं ज्ञान, साहित्यज्ञान अने तेमनी कवित्वशक्ति अति अद्भुत जणाय छे. आ ग्रंथ नृसमुद्र नामना नगरमां रचायो छे. तेनं ग्रंथप्रमाण बार हजार चोसठ (१२,०६४) श्लोक प्रमाण छे. अति विस्तृत ग्रंथने चार अधिकारमा विभागीकरण कर्यु छे. १) जिनधर्मप्रशंसा अधिकार २) धर्मसामग्रीभणनाधिकार ३) देशविरति अधिकार ४) सर्वविरति अधिकार बीजा अधिकारना १७ मी गाथामांथी प्रस्तुत कथा लेवामां आवी छे. उपन्नोऽवि अणारिय-देशे, जं अद्दओ वयं पत्तो। सो बुद्धिमहानिहिणो, महिमा खलु अभयमित्तस्स ॥ १७ ॥ 41

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132