Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
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ते कथानुं विस्तृत वर्णन ग्रंथकारे १९९ पद्यश्लोकमां कर्तुं छे तेनो अंतिम श्लोक आ प्रमाणे छे.
अनार्यदेश प्रभवोऽपि मंक्षु, मोक्षं ययावार्द्रकुमारसाधुः । सौहार्दतः श्रेणिकनन्दनस्य, कार्या ततः साधुभिरेव मैत्री ।।
३) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यरचित “त्रिषष्टि शलाकापुरुष महाकाव्य" ना १० पर्व छे. तेमां दशमां पर्वना सातमां सर्गमां श्लोक १७७ थी ३५६ सुधी संस्कृतपद्यबद्ध अनुष्टुप् छंदमां १८० श्लोकप्रमाण आर्द्रकुमारनुं चरित्र छे.
“इतश्च मध्येऽम्भोराशि, पातालजावनोयमः । आर्द्रको नाम देशोऽस्ति, पुरं तत्रार्द्रकाभिधम् ॥”
प्रस्तुत आर्द्रकुमारना रासमां कविए आर्द्रकुमारनी पत्नीनो “धनवती” तरीके उल्लेख कर्यो छे. ज्यारे काव्यमां तेमनो “श्रीमती” तरीके उल्लेख कर्यो छे.
तदुपरांत श्री जयकीर्तिसूरिकृत “शीलोपदेशमाला "मां आ कथानुं वर्णन छे. तेमज श्री रत्नशेखरसूरिविरचित "श्राद्धविधिप्रकरण" ग्रंथनी स्वोपज्ञ टीका मां त्रीजा श्लोकमां श्रावकधर्मने योग्य चार गुण बताव्या छे. तेमां प्रथमगुणना द्रष्टांतमां आर्द्रकुमारनुं कथानक बतावेलुं छे. तेमज विविध संस्कृत - प्राकृत ग्रंथोमां अने अनार्य देशमां जन्मेल अने आर्यक्षेत्रमां आवी दीक्षा ग्रहण करी तेनुं वर्णन ज्यां पण होय ते स्थळे आर्द्रकुमारनुं दृष्टांत दर्शाववामां आव्युं छे.
सामान्यथी प्रचलित एवी आ कथाने अहीं वर्णवामां आवी छे. तेनो ए ज हेतु छे के आ रासमां आर्द्रकुमारना पूर्वभव साथे तेमना जीवननुं विस्तृत वर्णन करवामां आव्युं छे. चारित्रमां करेली विराधनाना केवां फळ मले छे, ते आ चरित्र द्वारा जाणवा मळे छे.
आ कथाने सज्झाय तरीके पण रचेली छे. विक्रम संवत् १७११ मां तपगच्छ गुरुराज श्रीविजयसेनसूरींदनी पाटे थयेला श्री विजयप्रभमुणिंद, तेमनी परंपरामां थयेल श्री जयसागर गणी - श्री जितसागरगणि श्री मानसागरजी ए आर्द्रकुमारनी सज्झाय रची छे. तेमां त्रण ढाल छे. कुल गाथा ५६ छे.
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