Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ ए ऋषि आर्द्रकुमारनइ रे, परणसि जिणवारि रे, रंगइ एणे रे रयणे सुख विलसि ते, संगइ रत्ननइ तनुजा लेयनइ रे, तात गयउ निज ठाम रे, सडइ जाय रे, राजेसर बिठो मुहुलमां रे मूडइ धनवती प्रतिज्ञा धरी रे, रहि पोतानि गेह रे वारू आणइ रे भवि ए प्रति माहरी दीहाइ निरुपम नवमी ढाल ए रे, न्यानसागर कहि नेह रे वारू, थई रे एकण मनि सांभलउ श्रोतारू... आर्द्रकुमार मुनिनुं पतन एक दिवस ते नगरमां लाज विना वर वरवानी क्रीडा करती पांचे सखीओ ते ज देवलमां आवी अने बोली के आजे आपणे करमना पारखां करवा रमत रमीए. देवलना बारणामांथी प्रवेश करी जे सखी जे थांभलाने अडशे ते तेनो पति थशे. भोली मगलीनी पेठे चारे तरफ पण भमती एवी ते शेठनी पत्री धनवती पोताने वरवा योग्य कोई पण थंभने जोई शकी नहि, पछी साचा पतिनी पेठे पोतपोताना स्थंभने नहि मूकती एवी ते सखीओ कहेवा लागी के-हे सखि ! तुं शुं दुर्भाग्यवाली छे ? जे वरने नथी पामती. ते हृदयभेदक वचनने सांभलीने धनवती जाणे के तलवारथी भेदायेली होय के विंछीथी दंश देवायेली होय अथवा तो अग्निवडे दझायेली होय एम क्षणमात्र स्थिर थईने ऊभी रही. पछी त्रास पामेलां मृगना सरखा नेत्रवाली ते धनवती आमतेम भमतां पूर्वना पुण्ये देखाडेला ते ज मुनिने एकांतमां उभेला दीठा हे सखीओ ! हुं आने वरी छं. हवे क्यारे पण एने हुं नहि मूकुं. तमे पण जो पतिव्रता हो तो पोतपोताना वरने त्यजी देशो नहीं. ___ एम ते कन्या कहेती हती एवामां “ते सारं वद्यु” एम कहेती एवी देवीओ गर्जनाथी आकाशने जर्जरित करतां रत्नसमूहनी वृष्टि करी. सखीओ गर्जनाथी त्रास पामी एटले धनवती बे कांठानी वचमा रहेली शरदऋतुनी नदीनी पेठे मुनिना बे पगनी वचमां संताई गई. मनिए विचार्य के अहीं क्षणवार रहेवाथी पण व्रतरूपी वृक्षने महान पवन जेवो आ मने अनुकूळ उपसर्ग थयो, माटे अहीं वधारे वार रहेवू योग्य नथी. महर्षिओने कोई स्थळे निवास करीने रहेवानी आस्था होती नथी. तो ज्यां उपसर्ग थाय त्यां रहेवानी तो 73

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132