Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 116
________________ तप छट्ठ करइ सुविचार, वली उज्झित लिइ आहार दिन बावीस संयम पालइ मनि राग रोस सवि टालइ... ११ धन धन... चडइ क्षपकश्रेणि तुरंत, सवि कर्मह आणिउ अंत ऊपनउ केवलनाण, जेणे जगि उगियुं भाण... १२ धन धन... सुर सोवन पंकज सार, विरचइ हरखिइ अतिफार, तिहां बइठा ज्ञानी दीपइ, तेजइ रवि मंडल जीपइ... १३ धन धन... राय लोक सहित आवी वांदइ, मनमांही घणउ आणंदइ, केवलधर दिइ उपदेश, सुणता सवि भाजइ क्लेश... १४ धन धन... देशना सुणी पूछइ राय, भगवन् कहिउ करिय पसाय, एह महिष अनइ तुम्ह सामि, वइर कारण कहउ सिवगामी... १५ धन धन... ज्ञानी कहइ सांभलो भूप, पूरवभव तणउ स्वरूप, हूं आसग्रीवराय हूंतउ, ए नास्तिक हरिमंसु महतउ... १६ धन धन... अम्हे कुमत तणइ निखेवइ, सातमी पहुता छेवई, तिहां झूझ करता रीसई, आउ पुरी सागर तेत्रीसइ... १७धन धन... अति द्वेष लगी अधिकेरउ, इणि बांधिउ कर्म अनेरउ, संसारि फिरिउ बहुवार, पुणि किही न कीधी सार... १८ धन धन... हिव करम-विवर जउ दीधउ, तउ काज अम्हारउ सीधउ, ए महिष रुलिउ बहु काल, ते निसुणउ तुम्हि भूपाल... १९ धन धन... इणि फरस्या नरक जि सात, तिरजंचपणइ सह्या घात जउनि महिषि उदर ऊपनाउ, वार सात इहां विपन्नउ... २० धन धन... इम चउगइभवमांहि रुलिउ, इणि भवि आवी मुझ मिलियउ, मइ दूहविउ गाढउ एह, हिव पाम्यउ भवनउ छेह... २१ धन धन... 114

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132