Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

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Page 114
________________ मंत्री ते नगरजनोना टोळाने भेदीने कुमार पासे जाय छे. कुमारने छुपी रीते चालाकीथी त्यांथी खसेडी दे छे अने कोई न जाणे तेम पोताना कोठामा लईने संताडी दे छे. राजकुमार पण उत्तमकुलना खानदान अने गुणियल हता. पोतानी भूल समजे छे अने आत्मनिंदा करे छे. अवसर जाणी मंत्री कुमारने प्रतिबोध करे छे संसारनी असारता अने जीवहिंसाना कटुफळ समजावे छे. श्री नमिनाथना मुखथी सांभळेलु संसारनुं स्वरूप कुमारने विस्तारथी समजावे छे. संसारना सर्व संबंधो स्वार्थना छे, माता-पिता-बांधव कोई साथे आववाना नथी. ते पुण्य-पापमां क्यांय भाग पडावी शकता नथी. फक्त एक जिनधर्म ज परभवमां सदति अपावनार छे अने परंपराए मोक्षफलने अपावनार छे. स्वार्थी जगतना लोको गरज पडे त्यारे कृत्रिम स्नेह देखाडे छे अने पोतानो स्वार्थ पूरो थता दगो दईने जता रहे छे. इन्द्रजाळ सरखा सहु संबंध अनित्य अने अशरण छे. जिनधर्मनुं शरण ज आधारभूत छे. पूर्वकृत पुण्य-पाप ज जीवने सुख-दुःख अपावनार छे. जीवहिंसादि पापो जीवने परिभ्रमण करावे छे. चोराशी लाख योनिमां भटकावे छे. हिंसा ज दुर्गतिनुं बारणुं छे हिंसा ज दुःखनी खाण छे अने हिंसा ज सर्व पापोनुं मूळ छे. माटे हिंसादि पापोनो त्याग करवो ए ज श्रेयस्कर छे. मंत्रीना उपदेशथी अने चारे गतिना दुःख सांभळीने कुमारने जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न थाय छे. शुभ अध्यवसायथी आत्मानी निर्मळता प्राप्त थाय छे. शुभलेश्या मेळवे छे अने समाधिमय मन करे छे. उत्पन्न थयेल जातिस्मरणवाळा कुमारने जाणीने मंत्री तरत ज तेने पोताना महेले लई जाय छे. सर्व नगरविरोधने टाळीने लावेल कुमार प्रतिबोध पाम्यो छे. तेम जाणी हर्षथी तेने साधुवेष अर्पण करे छे. कुमारनो जन्म सफळ करे छे. कुमार पण हर्षथी ते वेषने धारण करे छे अने तरत ज त्यांथी विहार करी देशनी बहार नीकळी जाय छे रखेने राजा कोप करे. संयम, निरतिचार पालन करे छे. कुमारना संयमग्रहणथी मंत्री पण निश्चिंत थई जाय छे. हवे घायल थयेल महिष एक जग्याए स्थिर रहे छे. त्यांथी क्यांय जवा माटे समर्थ नथी. आत्म निंदतो ते समभावमां रहे छे. ते महिषनी आवी स्थिति सांभळीने मंत्री वेगथी तेनी पासे आवे छे. अंतिम आराधना करावे छे. दशविध आराधना समजावी अंतिम निर्यामणा करावे छे. संसारनं स्वरूप समजावी समाधिमां स्थिर करे छे अणसण उच्चरावे छे. शुभध्यानथी आराधना करता तेना अढार दिवस पूर्ण थाय छे. अणसणने अंते आयुष्य पुरू थता शुभध्यानथी मरी देवलोकमां जाय छे. लोहिताख्य नामनो बलवान असुरकुमार देव थाय छे. 112

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