Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

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Page 80
________________ तेहवइं तिहा कणि आवीया हो राजि, ईभ्य सेठ ततकाल सु. न्यानसागर कहि सांभलउं हो राजि, एह अग्यारमी ढाल सु... आर्द्रकुमारमुनिनुं वसंतपुरमां आगमन एवामां पृथ्वी उपर विहार करता अने विस्मृतिथी विकल थयेला आर्द्रकुमार मुनि दैवयोगे ते ज वसंतपुर नगरे आव्या. भमरो उत्तम पुष्पवाला वृक्ष तरफ जेम जाय तेम भोगावली कर्मथी भ्रमित थयेला मनवाला आर्द्रमुनि ते दानशाला प्रत्ये न बोलाव्या छतां पण गया. धनवती ए पण मुनिने हर्षथी शुद्ध अन्नपान वहोरावी अने नमन करी तेमना जमणा पगमां रहेला चिह्नने जोईने सारी रीते ओळखी काढ्या. तत्काल प्रगट थयेला रोमांचथी तुटी गया छे कंचुकीना बंधन जेना, तथा हर्षना आंसुथी विरहाग्निने शांत करती होय एवी ते श्रीमती मेघना आववाथी मोरलीनी पेठे नाचती, चकोर पक्षी जेम चंद्रने नीरखी रहे तेम ते मुनिना मुखारविंदने नीरखीने कहेवा लागी के हुं जाणुं हुं के दानथी पापो नाश पामी जाय छे ए वचन सत्य छे. १२ धनवती बोली के, “हे स्वामि ! भले पधार्या ! भले पधार्या ! तमे आटला घणा वखत सुधी क्यां रह्या हता ? ते देवालयमां हुं तमने वरी हती. माटे तमे जमारा पति छो. ते वखते तो हुं मुग्धा हती. तेथी मने पसीनाना बिंदुनी जेम त्यजी दईने तमे चाल्या गया हता, पण आजे सपडाया छो, हवे करजदारनी जेम अहींथी शी रीते जशो? हे नाथ ! ज्यारथी तमे दृष्टनष्ट थया हता. त्यारथी प्राणरहितनी जेम मारो बधो काळ निर्गमन थयो छे. माटे हवे प्रसन्न थईने मने अंगीकार करो. ते छतां पण कदी जो क्रूरताथी मारी अवज्ञा करशो तो हुं अग्निमां पडीने तमने स्त्रीहत्यानुं पाप आपीश.” तेटलामां तरत आवेला धनवतीना भाईओ मुनिने कहेवा लाग्या के - हे मुनि ! तमे भोजननी ईच्छावाळा छो ? अने भोजननी आपनारी तमने मली छे, तो पछी म विमुख थाओ छो ? हे मुनि ! तमे ज खरेखरा चतुर छो, जे ते वखते आ बाल्य वस्थावालीने त्यजीने गया हता अने हमणां प्रकट यौवनवाली जाणीने पारेवानी पेठे आव्या छो. जो तमे चोथुं व्रत पालवा माटे एने त्यजो छो तो अमने खेद थाय छे के-एम करवाथी तमे पहेला व्रतने भंग करो छो, अने तेम करवाथी तो बे पगनुं रक्षण करवा जतां मस्तक लेपाय छे. “ अरे अरे ! तमे शुं महारा व्रतने भांगो छो ? हुं ते नथी.” एम कहेतां एवा मुनिने कन्याए कह्युं के आगलथी तमारा पांच व्रत भांगेला छे. 78

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