Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

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Page 54
________________ आर्द्रकुमारनो पूर्वभव जंबूद्वीपना भरतक्षेत्रमा पृथ्वीरूपी नारीना हार समान जाणे के इन्द्रनी अलकापुरी होय तेवू वसंतपुर नामर्नु नगर छे. ते नगरमां सामायिक नामनो कणबी रहेतो हतो. तेने रूपवती, गुणवती एवी बंधुमती नामनी स्त्री हती. पंचविषय स्वरूप सांसारिक सुखोने बंने भोगवता हता. कोई वखते तप अने संयममां रक्त सुस्थित नामना आचार्यभगवंत नगर बहार उद्यानमां मुनिवृंद साथे पधार्या हता. हजारो नगरजनो तेमनो धर्मोपदेश सांभळता हता. एक दिवस आचार्य भगवंते वैराग्यसभर अमृतवाणीथी भव्यकमलने विकसित करवा हितकारी देशना आपवानी शरू करी. देशना - “हे भव्यात्माओ ! बाजीगरनी बाजी जेवो आ संसार छे. कुटुंब, परिवार सर्व अस्थिर छे. माटे मोहविडंबना छोडी परमारथ पंथे प्रयाण करवू. सम्यक्त्व सहित विरतिधर्म स्वीकारी जैन धर्ममां दृढ बनवं. अंजलिमा रहेल पाणी तेमज घासना अग्रभाग पर रहेला पाणीनां बिंदु समान चंचळ आयुष्य छे. काया पण माटीना वासण जेवी अनित्य अने पाणीना परपोटानी जेम अस्थिर छे, क्षणभंगुर छे, मल-मूत्रनी कोथळी छे. माटे कायानो गर्व करवा जेवो नथी. क्रोधादि चारे कषायो आत्माना अंतरंग शत्रुओ छे. तेने हणवा उपशमादि शस्त्रनो उपयोग करवो जोईए. परनिंदा अने पारकीपंचात करीने आत्माने तारी शकातो नथी. खरेखर, धर्म करवाथी धन वधे छे, भोगसामग्री मळे छे, स्वर्गना सुख अने ईच्छित फळनी प्राप्ति थाय छे.” आ प्रमाणे गुरुभगवंतनी देशना श्री न्यानसागरे पहेली ढालमां बतावी. तेने हे भव्यजीवो ! तमे हृदयमां धरजो. दुहा प्रतिबोधउ सुणी देशना, सामायिक तिणि वारि, करि जोडी गुरुनी कहई, तारि तारि प्रभु तारि... बंधुमती तेहनी प्रिया, साथइ मन संवेगि, लिं चारित्र दयिता-पती, मोडी मयणनई वेगि... षड्आवश्यक आदिथी, भणी सूत्रसिद्धांत, अनुक्रमई गीतारथ थया, सामायिक ऋषिसंत... m 52

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