Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad

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Page 65
________________ तो मारी मैत्रीनुं फळ शुं ? कपूर ज वधारे सारो, जे पोतानी सुगंध सर्वने आपे. जे न्यायने आपनारो ते राजा, जे अंधकारने नाश करनारो ते दीवो, जे त्रण वर्गने अर्थे थाय ते धन अने जे प्रतिबोध पमाडे ते मित्र जाणवो. तेनो श्लोक नीचे प्रमाणे छे. स राजा न्यायदेष्टा यः स दीपो यस्तमोपहः । तद्धनं यन्त्रिवर्गार्थं, तन्मित्रं यत्प्रबोधकम् ।। परंतु दूर देशमां रहेलो ए शी रीते प्रतिबोध पामे ! अथवा अरिहंतना प्रतिबिंबना दर्शनथी कदाच ए जातिस्मरण ज्ञान पामे अने त्यार पछी सुखे प्रतिबोध पामे. एम विचारी ते अभयकुमारे समकितरूप वृक्षना बीज समान सुवर्णाभरणवाला श्री आदिनाथ परमात्माना सुवर्णप्रतिबिंबने डाबडामां मूक्युं वळी तेमां दिव्य बे वस्त्रो, आभूषण, पूजानां उपकरण, धूप, केसर, सुखड वगेरे भर्या. ते पेटीना द्वार पर ताळूं दई अभयकुमारे तेनी उपर महोरछाप करी. ज्यारे राजा श्रेणिके मंत्रीने घणी भेटो आपीने प्रिय आलापपूर्वक विदाय कर्यो. ते वखते अभयकुमारे पण तेना हाथमां ते पेटी आपी अने अमृत जेवी वाणीथी नो सत्कार करीने कह्युं के "हे भद्र ! आ पेटी आर्द्रकुमारने आपजे अने ते मारा बंधुने मारो आ संदेशो कहेजे. आ पेटी एकांतमां जईने तारे एकलाए ज उघाडवी अने तेमां जे वस्तु छे, ते तारे ज जोवी, बीजाने बताववी नहि.” आ प्रमाणे तेनुं कहेवुं कबूल करी ते पुरुष अनुक्रमे पोताना देश आर्द्रक तरफ पहोच्यो. श्रेणिकराजाए आपेली भेट आर्द्रकराजाने आपी अने एकांते आर्द्रकुमारना मंदिरे आव्यो. मंत्रीए आर्द्रकुमारने पेटी आपीने अभयकुमारनो संदेशो कह्यो. ते सांभळीने ते कुमार अमृतथी सिंचन कर्यानी पेठे आनंद पाम्यो. जिनप्रतिमाना दर्शनथी आर्द्रकुमारनो निस्तार केवी रीते थाय छे ते कवि आगल बतावशे. आ प्रमाणे सारा विचारवाली पांचमी ढाल पूर्ण थई. दूहा अति अंधारई मंजुषा, जव उघाडी तेह, प्रतिमा प्रथमजिणंदनी, झगमग करती तेह... दिग दिसनई परकासती, रवि जिम निज उद्योति, देखीनई कुंअर कहि, अहो अहो अद्भूत ज्योति...... 63 २

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