Book Title: Aho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Author(s): Babulal S Shah
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
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साधुजीवन, अप्रमाद, साधुलक्षण, विभूषात्याग इत्यादि अनेक विषयों की सुंदर प्रस्तुति की है। पू. आचार्य श्री मल्लिषेणसूरि इस २५ श्लोकमय ग्रन्थ के कर्ता है। पूज्यश्री ने शक संवत १२१४ और विक्रम संवत १३४९ में “स्याद्वादमंजरी” नामक टीकाग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ में ग्रन्थरचना समय का कोई संकेत मिलता नहीं है। पू. आ. श्री मल्लिषेणसूरि के गुरु नागेन्द्रगच्छीय श्री शीलगुणसूरि के शिष्य आरंभसिद्धि आदि ग्रन्थकर्ता श्री उदयप्रभसूरि है।। इस ग्रन्थ के टीकाकार पूर्वाचार्य श्री सिंहसूरि है। उनका जीवन-कवन हमे प्राप्त न हो सका। प. पू. भवोदधितारक दीक्षादानेश्वरी आ. भ. श्री गुणरत्नसूरि म. सा. एवं. प. पू. आ. भ. श्री रश्मिरत्नसूरि म. सा. की मंगल आज्ञा और आशीर्वाद से अद्यावधि अप्रगट अमुद्रित इस सटीक ग्रन्थ का संशोधन, पू. आ. श्री मुनिचंद्रसूरि म. सा. (पू. ॐकारसूरि समुदाय) के सूचन से ५ हस्तादर्शों द्वारा किया गया है। जिनमें से २ हस्तादर्श पू. आ. श्री मुनिचंद्रसूरि के सहयोग से "श्री मोहनलालजी जैन ज्ञानभंडार, सूरत” द्वारा प्राप्त हुई और ३ हस्तादर्श श्रुतप्रेमी श्रीमान् बाबुभाई सरेमलजी के सहयोग से “आ. श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मंदिर, कोबा” द्वारा प्राप्त हुई है। अन्त में मुख्यतया वैराग्यपोषक इस ग्रन्थ का अध्ययन-चिंतन-मनन करके स्वजीवन को आचारमय-वैराग्यमय बनाकर हम शाश्वत सुख को प्राप्त करे ऐसी एक अभिलाषा।
गुरु गुणरत्न-रश्मिरत्नसूरिगीतार्थरत्न वि. चरणरज मुनि हितार्थरत्नवि.
जैन सोसायटी अहमदाबाद.
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