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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
आश्रयरूप होता है ।
[५७६] एक परमाणु से पूर्ण या दो परमाणुओं से पूर्ण (एक आकाशप्रदेश में) सौ परमाणु भी समा सकते हैं । सौ करोड़ परमाणुओं से पूर्ण एक आकाशप्रदेश में एक हजार करोड़ परमाणु भी समा सकते हैं ।
[५७७] आकाशास्तिकाय का लक्षण 'अवगाहना' रूप है ।
भगवन् ! जीवास्तिकाय से जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है ? गौतम ! जीवास्तिकाय के द्वारा जीव अनन्त आभिनिबोधिकज्ञान की पर्यायों को, अनन्त श्रुतज्ञान की पर्यायों को प्राप्त करता है; (इत्यादि सब कथन) द्वितीय शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक के अनुसार; यावत् वह उपयोग को प्राप्त होता है, (यहाँ तक कहना चाहिए ।) जीव का लक्षण उपयोग रूप है । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय से जीवों की क्या प्रवृत्ति होती है ? गौतम ! पुद्गलास्तिकाय से जीवों के औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, मनोयोग, वचनयोग, काययोग और श्वास - उच्छ्वास का ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है । पुद्गलास्तिकाय का लक्षण 'ग्रहण' रूप है ।
[५७८] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, कितने धर्मास्तिकाय के प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह जघन्य पद में तीन प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? ( गौतम ! वह) जघन्य पद में चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । वह आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? ( गौतम ! वह) सात (आकाश ) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? अनन्त (जीव ) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? ( गौतम ! वह) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) कथंचित् स्पृष्ट होता है और कथंचित् स्पृष्ट नही होता । यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है । भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना । भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता । यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में एक, दो तीन या चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट के विषय में
जानना ।
(भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से ( स्पृष्ट होता है ? ) गौतम ! वह छह प्रदेशों से ( स्पृष्ट होता है ।) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? वह कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् नहीं । यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों से तथा अद्धाकाल के समयों से स्पृष्ट होने के विषय में जानना चाहिए ।
[५७९] भगवन् ! जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों में स्पृष्ट