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भगवती - १७/-/१/६९५
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गति से मर कर विना अन्तर के यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मर कर सीधा यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है । भगवन् ! उदायी हस्तराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह रत्नप्रभापृथ्वी के एक सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा । भगवन् ! वहाँ से अन्तररहित निकल कर कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा । भगवन् ! भूतानन्द नामक हस्तिराज किस गति से मर कर सीधा भूतानन्द हस्तिराज रूप में यहाँ उत्पन्न हुआ ? गौतम ! उदायी हस्तिराज के अनुसार भूतानन्द हस्तिराज की भी वक्तव्यता, सब दुःखों का अन्त करेगा, तक जाननी चाहिए ।
[६९६] भगवन् ! कोई पुरुष, ताड़ के वृक्ष पर चढ़े और फिर उस ताड़ से ताड़ के फल को हिलाए अथवा गिराए तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से ताड़ का वृक्ष और ताड़ का फल उत्पन्न हुआ है, उन जीवों को भी कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । भगवन् ! यदि वह ताड़फल अपने भार के कारण यावत् नीचे गिरता है और उस ताड़फल के द्वारा जो जीव, यावत् जीवन से रहित हो जाते हैं, तो उससे उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! वह पुरुष कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन जीवों के शरीर से ताड़वृक्ष निष्पन्न हुआ है, और जिन जीवों के शरीर से ताड़- फल निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । जो जीव नीचे पड़ते हुए ताड़फल के लिए स्वाभाविक रूप से उपकारक होते हैं, उन जीवों को पांचों क्रियाएँ लगती हैं ।
भगवन् ! कोई पुरुष वृक्ष के मूल को हिलाए या नीचे गिराए तो उसको कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी से लेकर यावत् प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीरों से मूल यावत् बीज निष्पन्न हुए हैं, उन जीवों को भी कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । भगवन् ! यदि वह मूल अपने भारीपन के कारण नीचे, गिरे, यावत् जीवों का हनन करे तो उस मूल को हिलाने वाले और नीचे गिराने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि चार क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से वह कन्द निष्पन्न हुआ है यावत् बीज निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को कायिकी आदि चार क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से मूल निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को तथा जो जीव नीचे गिरते हुए मूल के स्वाभाविक रूप से उपकारक होते हैं, उन जीवों को भी कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं ।
भगवन् ! जब तक वह पुरुष कन्द को हिलाता है या नीचे गिराता है, तब तक उसे कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से कन्द निष्पन्न हुआ है, वे जीव भी कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । भगवन् ! यदि वह कन्द अपने भारीपन के कारण नीचे गिरे, यावत् जीवों का हनन करे तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि चार क्रियाएँ लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से मूल, स्कन्ध आदि निष्पन्न हुए हैं, तथा जिन जीवों के शरीर से कन्द निष्पन्न हुए हैं, एवं जो जीव नीचे गिरते हुए उस कन्द के स्वाभाविकरूप से उपकारक होते हैं, उन सभी जीवों को पांच क्रियाएँ