Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 217
________________ २१६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, (किन्तु) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि वे पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से ? गौतम ! वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से भी । भगवन् ! यदि वे संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचरों से, या स्थलचरों से अथवा खेचरों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जलचरों से, स्थलचरों से तथा खेचरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । (भगवन् !) यति वे जलचर, स्थलचर और खेचर जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्त से अथवा अपर्याप्त से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पर्याप्त से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त से नहीं । भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरक-पृथ्वीयों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह एक रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है । भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव, जो रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! उनके शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! वे सेवार्तसंहनन वाले होते हैं । भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है ।। भगवन् ! उनके शरीर का संस्थान कौन-सा कहा गया है ? गौतम ! हुण्डकसंस्थान है । भगवन् ! उन जीवों के कितनी लेश्याएँ कही गई है ? गौतम ! तीन लेश्याएँ हैं-कृष्ण, नील, कापोत । भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं अथवा सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं ? गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते । भगवन् ! वे जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं होते; अज्ञानी होते हैं, उनके अवश्य दो अज्ञान होते हैं, यथा-मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान | भगवन् ! वे जीव मनोयोगी होते हैं, या वचनयोगी अथवा काययोगी होते हैं ? गौतम ! वे मनोयोगी नहीं, (किन्तु) वचनयोगी और काययोगी होते हैं । भगवन् ! वे जीव साकारोपयोग वाले हैं या अनाकारोपयोग-युक्त हैं ? गौतम ! वे दोनो उपयोग वाले होते है । भगवन् ! उन जीवों के कितनी संज्ञाएं कही गई हैं ? गौतम ! चार संज्ञाएं यथाआहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा । भगवन ! उन जीवों के कितने कषाय होते हैं ? गौतम ! उनके चार कषाय होते हैं, यथा-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय । भगवन् ! उन जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? गौतम ! पांच इन्द्रियाँ यथा श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, यावत् स्पर्शेन्द्रिय । भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! तीन यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात | भगवन् ! वे जीव साता-वेदक हैं या असाता-वेदक हैं ? गौतम ! वे सातावेदक भी हैं और असातावेदक

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