Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 261
________________ २६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद समयकी स्थिति वाला है ? गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म-समय की यावत् कदाचित् कल्योजसमय की स्थिति वाला है । इस प्रकार यावत् आयत-संस्थान पर्यन्त जानना । भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? गौतम ! वे ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-समय की यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं । विधानादेश से कृतयुग्म-समय की यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना । भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान के काले वर्ण के पर्याय क्या कृतयुग्म हैं, यावत् कल्योज रूप हैं ? गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं, इत्यादि पूर्ववत् । इसी प्रकार नीलवर्ण के पर्यायों तथा इसी प्रकार पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श के विषय में रूक्ष स्पर्शपर्याय तक कहना । [८७४] भगवन् ! श्रेणियां द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! पूर्व और पश्चिम दिशा में लम्बी श्रेणियां द्रव्यार्थरूप में संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न | गौतम ! वे अनन्त हैं । इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी श्रेणियों तथा ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए । भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थ रूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे असंख्यात हैं । भगवन् ! पूर्व और पश्चिम में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! असंख्यात हैं । इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी और ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियों के सम्बन्ध में जानना । भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप में संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । इसी प्रकार पूर्व और पश्चिम में लम्बी तथा दक्षिण और उत्तर में लम्बी तथा ऊर्ध्व और अधोदिशा में लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ भी जानना । ___ भगवन् ! आकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! द्रव्यार्थता की वक्तव्यता के समान प्रदेशार्थता की वक्तव्यता कहनी चाहिए । भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हैं, किन्तु अनन्त नहीं हैं । पूर्व और पश्चिम में तथा उत्तर और दक्षिण में लम्बी श्रेणियाँ इसी प्रकार हैं । ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ संख्यात नहीं और अनन्त भी नहीं; किन्तु असंख्यात हैं । भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं और कदाचित् अनन्त हैं । भगवन् ! पूर्व और पश्चिम में लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियाँ संख्यात हैं ? गौतम ! वे नहीं अनन्त हैं । इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में समझना । भगवन् ! ऊर्ध्व और अधोदिशा में संख्यात हैं ? गौतम ! वे कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं और कदाचित् अनन्त हैं । [८७५] भगवन् ! क्या श्रेणियाँ सादि-सपर्यवसित हैं, अथवा सादि-अपर्यवसित हैं या वे अनादि-सपर्यवसित हैं, अथवा अनादि-अपर्यवसित हैं । गौतम ! वे न तो सादि-सपर्यवसित हैं, न सादि-अपर्यवसित हैं और न अनादिसपर्यवसित हैं, किन्तु अनादि-अपर्यवसित हैं । इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए । भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ सादि-सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ।

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