Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 287
________________ २८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद है, वह सूक्ष्मसम्पराय-संयत होता है । यह यथाख्यात-संयत से कुछ हीन होता है । [९४१] मोहनीय कर्म के उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ जा जिन होता है, वह यथाख्यात-संयत कहलाता है । [९४२] भगवन् ! सामायिकसंयत सवेदी होता है या अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी । यदि वह सवेदी होता है, आदि सभी कथन कषायकुशील के अनुसार कहना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना । परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक समान । सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ समान है । भगवन् ! सामायिकसंयत सराग होता है या वीतराग ? गौतम ! वह सराग होता है, वीतराग नहीं होता है । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत-पर्यन्त कहना चाहिए | यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए । भगवन् ! सामायिकसंयत स्थितकल्प में होता है या अस्थितकल्प में ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है । भगवन् ! छेदोपस्थापनिकसंयत ? गौतम ! वह स्थितकल्प में होता है, अस्थितकल्प में नहीं होता है । इसी प्रकार परिहारविशुद्धिसंयत में भी समझना । शेष दो-सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन सामायिकसंयत के समान जानना । भगवन् ! सामायिकसंयत जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है या कल्पातीत में होता है ? गौतम ! वह जिनकल्प में होता है, इत्यादि कषायकुशील के समान जानना । छेदोपस्थापनिक और परिहारविशुद्धिक-संयत के सम्बन्ध में बकुश के समान जानना । शेष दो-सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत 'निर्ग्रन्थ' के समान समझना चाहिए । [९४३] भगवन् ! सामायिकसंयत पुलाक होता है, अथवा बकुश, यावत् स्नातक होता है ? गौतम ! वह पुलाक, बकुश यावत् कषायकुशील होता है, किन्तु 'निर्ग्रन्थ' और स्नातक नहीं होता है । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत? गौतम ! वह केवल कषायकुशील होता है । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत में भी समझना । भगवन् ! यथाख्यातसंयत ? वह केवल निर्ग्रन्थ या स्नातक होता है ।। भगवन् ! सामायिकसंयत प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! वह प्रतिसेवी भी होता है और अप्रतिसेवी भी होता है ? भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है तो क्या मूलगुणप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! इस विषय में पुलाक समान जानना । सामायिकसंयत के समान छेदोपस्थापनिकसंयत को जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिसंयत ? गौतम ! वह अप्रतिसेवी होता है । इसी प्रकार यथाख्यातसंयत तक कहना । भगवन् ! सामायिकसंयत में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! दो, तीन या चार । कषायकुशील समान चार ज्ञान भजना से समझना । इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना। यथाख्यातसंयत में ज्ञानोद्देशक अनुसार पांच ज्ञान भजना से । भगवन् ! सामायिकसंयत कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? गौतम ! वह जघन्य आठ प्रवचनमाता का अध्ययन करता है, इत्यादि कषायकुशील समान जानना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! जघन्य नौवें पूर्व की तीसरी आचारवस्तु तक तथा उत्कृष्ट दस पूर्व असम्पूर्ण तक अध्ययन करता है । सूक्ष्मसम्परायसंयत को सामायिकसंयत के समान जानना । भगवान् ! यथाख्यातसंयत ?

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