Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 300
________________ भगवती - २६/-/१/९८० २९९ भगवन् ! कृष्णपाक्षिक जीव ने (आयुष्यकर्म) बांधा था, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा । शुक्लपाक्षिक सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में चारों भंग हैं । भगवन् ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता और नहीं बांधेगा । ज्ञानी ( से लेकर) अवधिज्ञानी तक में चारों भंग पाये जाते हैं । भगवन् ! मनः पर्यवज्ञानी जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? इत्यादि । गौतम ! किसी ने आयुष्यकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा; किसी ने आयुष्यकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा तथा किसी ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा । केवलज्ञानी में एकमात्र चौथा भंग है । इसी प्रकार इस क्रम से नोसंज्ञोपयुक्त जीव मनःपर्यवज्ञानी के समान होते हैं । अवेदी और अकषायी में सम्यग्मिथ्यादृष्टि समान है । अयोगी केवली जीव में एकमात्र चौथी भंग है । शेष पदों में यावत् अनाकारोपयुक्त तक में चारों भंग पाये जाते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? गौतम ! चारों भंग । इसी प्रकार सभी स्थानों में नैरयिक के चार भंग, किन्तु कृष्णलेश्यी एवं कृष्णपाक्षिक नैरयिक जीव में पहला तथा तीसरा भंग तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि में तृतीय और चतुर्थ भंग है । असुरकुमार में भी इसी प्रकार है । किन्तु कृष्णलेश्यी असुरकुमार में पूर्वोक्त चारों भंग । शेष सभी नैरयिकों के समान । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना । पृथ्वीकायिकों में सभी स्थानों में चारों भंग होते हैं । किन्तु कृष्णपाक्षिक पृथ्वीकायिक में पहला और तीसरा भंग है । भगवन् ! तेजोलेश्यी पृथ्वकायिक में । गौतम ! केवल तृतीय भंग । शेष सभी स्थानों में चार-चार भंग । अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के चारो भंग है । तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों में प्रथम और तृतीय भंग । द्वीन्द्रिय, तृतीय और चतुरिन्द्रिय जीवों में प्रथम और तृतीय भंग । विशेष यह है कि इनके सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में एकमात्र तृतीय भंग है । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक में तथा कृष्णपाक्षिक में प्रथम और तृतीय भंग हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव में तृतीय और चतुर्थ भंग होते हैं । सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान, इन पांचों पदों में द्वितीय भंग को छोड़कर शेष तीन भंग हैं । शेष सभी पूर्ववत् जानना । मनुष्यों का कथन औधिक जीवों के समान । किन्तु इनके सम्यक्त्व, औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान, इन पदों में द्वितीय भंग को छोड़कर शेष तीन भंग हैं । शेष पूर्ववत् । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन असुरकुमारों के समान है । नामकर्म, गोत्रकर्म और अन्तरायकर्म ज्ञानावरणीयकर्म के समान है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - २६ उद्देशक - २ [९८१] भगवन् ! क्या अनन्तरोपपत्रक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि । गौतम ! प्रथम और द्वितीय भंग होता है । भगवन् ! सलेश्यी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इनमें सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग । किन्तु कृष्णपाक्षिक में तृतीय भंग पाया जाता है । इस प्रकार सभी पदों में पहला और दूसरा भंग कहना, किन्तु विशेष यह है कि सम्यगमिथ्यात्व मनोयोग और वचनयोग के विषय में प्रश्न नहीं करना । स्तनितकुमार

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