Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 285
________________ २८४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! बकुशत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है । इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषायकुशील को समझना । भगवन् ! निर्ग्रन्थत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! स्नातकत्व? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है । भगवन् ! बहुत पुलाक कितने काल तक रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त । भगवन् ! बहुत बकुश ? गौतम ! सर्वकाल । इसी प्रकार कषायकुशीलों तक जानना । निर्ग्रन्थों पुलाकों के समान । स्नातकों बकुशों के समान है । [९३०] भगवन् ! (एक) पुलाक का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का होता है । (अर्थात्) अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल का और क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्तन का । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक जानना । भगवन् ! स्नातक का ? गौतम ! उसका अन्तर नहीं होता । भगवन् ! (अनेक) पुलाकों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट संख्यात वर्षों का । भगवन् ! बकुशों का ? गौतम ! उनका अन्तर नहीं होता । इसी प्रकार कषायकुशीलों तक का कथन जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थों का ? गौतम ! उनका अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट छह मास का है । स्नातकों का अन्तर बकुशों के समान है । [९३१] भगवन् ! पुलाक के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! तीन समुद्घातवेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात । भगवन् ! बकुश के ? गौतम ! पांच समुद्घात कहे हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर तैजससमुद्घात तक । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् ! कषायकुशील के ? गौतम ! छह समुद्घात हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर आहारकसमुद्घात तक । भगवन् ! निर्ग्रन्थ के ? गौतम ! एक भी समुद्घात नहीं होता । भगवन् ! स्नातक के ? गौतम ! केवल एक केवलिसमुद्घात है | [९३२] भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवें भाग में होते हैं, असंख्यातवें भाग में होते हैं, संख्यातभागों में होते हैं, असंख्यातभागों में होते हैं या सम्पूर्ण लोक में होते हैं ? गौतम ! वह लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होते, किन्तु असंख्यातवें भाग में होते हैं, संख्यातभागों में असंख्यातभागों में या सम्पूर्ण लोक में नहीं होते हैं । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक समझ लेना । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह लोक के संख्यातवें भाग में और संख्यातभागों में नहीं होता, किन्तु असंख्यातवें भाग में, असंख्यात भागों में या सर्वलोक में होता है । [९३३] भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवें भाग को स्पर्श करता है या असंख्यातवें भाग को ? अवगाहना के समान, स्पर्शना के विषय में भी यावत् स्नातक तक जानना । [९३४] भगवन् ! पुलाक किस भाव में होता है ? गौतम ! वह क्षायोपशमिक भाव में होता है । इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! औपशमिक या क्षायिक भाव में । भगवन् ! स्नातक ? वह क्षायिक भाव में होता है । [९३५] भगवन् ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! प्रतिपद्यमान पूर्व प्रतिपन्न दोनो अपेक्षा पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा भी पुलाक

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