Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 242
________________ भगवती - २४/-/२०/८५६ २४१ वे संज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि, पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चों के भेद अनुसार कहने चाहिए । यावत् - भगवन् ! असंज्ञीपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की । भगवन् ! वे (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों अनुसार भवादेश तक कहनी चाहिए । कालादेश से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि - पृथक्त्व अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग । द्वितीय गमक में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । परन्तु विशेष यह है कि कालादेश से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त, और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अनुसार यहाँ कालादेश तक कहनी चाहिए । परन्तु परिमाण जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । यदि वह स्वयं जगन्यकाल की स्थिति वाला हो, तो जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न । पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति के असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के बिच तीन गमको अनुसार यहाँ भी तीनों ही गमकों में अनुबन्ध तब सब कहना चाहिए । भवादेव से - जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है, तथा कालादेश से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटिवर्ष । यदि वह (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट आठ अन्तमुहूर्त । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है । विशेष यह कि कालादेश ( भिन्न) समझना चाहिए । यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो प्रथम गमक के अनुसार उसकी वक्तव्यता जाननी चाहिए । विशेष यह हैं कि उसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती है । शेष पूर्ववत् । काल की अपेक्षा से - जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग । यदि वह (उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ) जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हो, तो भी यही सातवें गमक की वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि कालादेश से - जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि । यदि वही, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है, इत्यादि समग्र वक्तव्यता, रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले 4 16

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