Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 249
________________ २४८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद तेतीस सागरोपम की है । इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना । भवादेश से दो भव तथा कालादेश से - जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी । [ प्रथम गमक ] यदि वह सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव जघन्य काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न हो तो उसके विषय में यही वक्तव्यता । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व - अधिक तेतीस सागरोपम । यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न हो तो, उसके सम्बन्ध में यही वक्तव्यता । विशेष यह है कि कालादेश से - जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि- अधिक तेतीस सागरोपम । यहाँ तीन हीं गमक कहना । शेष छह गमक नहीं कहे जाते । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' शतक - २४ उद्देशक - २२ 1 [८५८] भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यचयोनिकों से ? ( गौतम !) नागकुमार- उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए । भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला यावत् संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वालोमें। शेष नागकुमार - उद्देशक अनुसार जानना, यावत् कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक गमनागमन करता है । यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तर में उत्पन्न होता है, तो नागकुमार के दूसरे गमक में कही हुई वक्तव्यता जानना । यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्ववत् । स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए । संवेध - जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम तक गंमनागमन करता है । मध्य के तीन गमक नागकुमार के तीन मध्य गमकों के समान कहने चाहिए । अन्तिम तीन गमक भी नागकुमार- उद्देशक अनुसार कहने चाहिए । विशेष यह कि स्थिति और संवेध भिन्न-भिन्न जानना चाहिए । संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की वक्तव्यता भी उसी प्रकार जाननी चाहिए । विशेष यह कि स्थिति और अनुबन्ध भिन्न है तथा संवेध, दोनों की स्थिति को मिलाकर कहना । यदि वे (वाणव्यन्तर देव), मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो उनकी वक्तव्यता नागकुमार- उद्देशक अनुसार असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों के समान कहनी चाहिए । विशेष यह है कि तीसरे गमक में स्थिति जघन्य एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए । अवगाहना जघन्य एक गाऊ की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है | शेष पूर्ववत् । इनका संवेध इसी उद्देशक में जैसे असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अनुसार कहना चाहिए । जिस प्रकार नागकुमार- उद्देशक में कहा गया है, उसी प्रकार संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों की वक्तव्यता कहनी चाहिए । परन्तु वाणव्यन्तर देवों की स्थिति और संवेध उससे भिन्न जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' शतक - २४ उद्देशक - २३ [८५९] भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों

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