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भगवती-२१/२/-/८३१
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है कि इनकी अवगाहना तालवर्ग के समान है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
[ शतक-२३ वर्ग-३ | [८३२] भगवन् ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सज्झा, छत्ता, वंशानिका और कुरा; इन वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।।
| शतक-२३ वर्ग-४ [८३३] भगवन् ! पाठा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दन्ती और चण्डी, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इनकी अवगाहना वल्लीवर्ग के समान समझनी चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२३ वर्ग-५ ] [८३४] भगवन् ! माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लाँगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, हरेणुका
और लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) आलुकवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना । इस प्रकार इन पांचों वर्गों के कुल पचास उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इन पांचों वर्गों में कथित वनस्पतियों के सभी स्थानों में देव आकर उत्पन्न नहीं होते; इसलिए इन सब में तीन लेश्याएँ जाननी चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
(शतक-२४) . [८३५] चौवीसवें शतक में चौवीस उद्देशक इस प्रकार हैं-उपपात, परिमाण, संहनन, ऊँचाई, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, योग, उपयोग । तथा
[८३६] संज्ञा, कषाय, इन्द्रिय, समुद्घात, वेदना, वेद, आयुष्य, अध्यवसाय, अनुबन्ध, काय-संवेध । ये वीस द्वार हैं ।
[८३७] यह सब विषय चौवीस दण्डक में से प्रत्येक जीवपद में कहे जायेंगे । इस प्रकार चौवीसवें शतक में चौवीस दण्डक-सम्बन्धी चौवीस उद्देशक कहे जायेंगे ।
| शतक-२४ उद्देशक-१ [८३८] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या व नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न नहीं होते हैं । (भगवन् !) यदि (नैरयिकजीव) तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे