Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 239
________________ २३८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद शतक - २४ उद्देशक - १४ [८५०] भगवन् ! तेजस्कायिक जीव, कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिकउद्देशक की तरह कहना । विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध ( भिन्न) समझना | तेजस्कायिक जीव देवों से आ कर उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - २४ उद्देशक- १५ [८५१] भगवन् ! वायुकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । तेजस्कायिक उद्देशक के समान है । स्थिति और संवेध तेजस्कायिक से भिन्न समझना चाहिए । शतक - २४ उद्देशक - १६ [८५२ ] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । यह उद्देशक पृथ्वीकायिक उद्देशक के समान है । विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं । भव की अपेक्षा सेवे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट अनन्त भव ग्रहण करते हैं, तथा काल की अपेक्षा से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल । शेष पांच गमकों में उसी प्रकार आठ भव जानने चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और संवेध पहले से भिन्न जानना चाहिए । शतक - २४ उद्देशक - १७ [८५३] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि, यावत्-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यहां पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत् कालावेश से - जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात भव । पृथ्वीकायिक के साथ द्वीन्द्रिय का संवेध अनुसार पहला, दूसरा, चौथा और पाँचवाँ इन चार गमकों में संवेध जानना चाहिए । शेष पांच गमकों में उसी प्रकार आठ भव होते हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और मनुष्यों के साथ पूर्वोक्त आठ भव जानना चाहिए । देवों से च्यव कर आया हुआ जीव द्वीन्द्रिय में उत्पन्न नहीं होता । यहाँ स्थिति और संवेध पहले से भिन्न है । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - २४ उद्देशक - १८ [८५४] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? ; इत्यादि प्रश्न । - उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी कहना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए | तेजस्कायिकों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट २०८ रात्रि - दिवस का और द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट १९६ रात्रि - दिवस अधिक ४८ वर्ष होता है । त्रीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट ३९२ रात्रि दिवस होता है । इस प्रकार यावत्-संज्ञी मनुष्य तक सर्वत्र जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - २४ उद्देशक - १९ [८५५ ] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।

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