Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 225
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद वक्तव्यता कहनी । इसमें इन पांच बातों में विशेषता है- उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल - पृथक्त्व होती है । उनके तीन ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं उनके आदि के पांच समुद्घात होते हैं उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट मासपृथक्त्व होता है । शेष सब भवादेश तक पूर्ववत् । काल की अपेक्षा से - जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल । यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त चतुर्थगमक के समान इसकी वक्तव्यता समझना । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से - जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चालीस हजार वर्ष काल । २२४ यदि वह जघन्य कालस्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त गमक के समान जानना । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से - जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है । यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और उत्पन्न हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान समझना । विशेषता यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट भी पांच सौ धनुष की होती है । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती है एवं अनुबन्ध भी उसी प्रकार जानना । काल की अपेक्षा से - जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम । यदि वही मनुष्य, जघन्य काल की स्थिति वाले (रत्नप्रभा) में उत्पन्न हो, तो उसकी वक्तव्यता सप्तम गमक के समान जानना । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले में उत्पन्न हो तो उसी पूर्वोक्त सप्तम गमक के समान वक्तव्यता जानना । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से - जघन्य पूर्वकोटि अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत् गमनागमन करता है । [८४२ ] भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी - मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभानैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव वहाँ एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उनके विषय में रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान गमक जानना । विशेष यह है कि उनके शरीर की अवगाहना जघन्य रत्निपृथक्त्व और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष होती है । उनकी स्थिति जघन्य वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती । इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना । शेष सब कथन भवादेश तक पूर्ववत् । काल की अपेक्षा से - जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक बारह सागरोपम; इतने काल तक गमनागमन करता है । इस प्रकार औधिक के तीनों गमक मनुष्य की वक्तव्यता के समान जानना । विशेषता नैरयिक की स्थिति और कालादेश से संवेध जान लेना । यदि वह स्वयं जघन्य स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्य, शर्कराप्रभा पृथ्वी के

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