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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
यहाँ मूलादि दस उद्देशक वंशवर्ग के समान जानने चाहिए ।
| शतक-२२ वर्ग-५ | [८२७] भगवन् ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज, इत्यादि सब नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार नलिनी, कुन्द औ महाजाति (तक) इन सब पौधों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ भी मूलादि समग्र दश उद्देशक शालिवर्ग के समान (जानने चाहिए) ।
। शतक-२२ वर्ग-६ । [८२८] भगवन् ! पूसफलिका, कालिंगी, तुम्बी, त्रपुषी, ऐला, वालुंकी, इत्यादि वल्लीवाचक नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार अलग कर लेने चाहिए, फिर तालवर्ग के समान, यावत् दधिफोल्लइ, काकली, सोक्कली और अर्कबोन्दी, इन सब वल्लियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ भी तालवर्ग के समान मूल आदि दस उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि फल की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष-पृथक्त्व की होती है । सब जगह स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व की है । शतक-२२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-२३) भगवद्वाणीरूप श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार हो ।
[८२९] तेईसवें शतक में पांच वर्ग हैं-आलुक, लोही, अवक, पाठा और माषपर्णी वल्ली । इन प्रकार पांच वर्गों के पचास उद्देशक होते हैं ।
| शतक-२३ वर्ग-१ [८३०] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! आलू, मूला, अदरक, हल्दी, रुरु, कंडरिक, जीरु, क्षीरविराली, किट्टि, कुन्दु, कृष्णकडसु, मधु, पयलइ, मधुश्रृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिनरुहा और बीजरुहा, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ वंशवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इनके मूल के रूप में जघन्य एक, दो या तीन, और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात और अनन्त जीव आकर उत्पन्न होते हैं । हे गौतम ! यदि एक-एक समय में, एक-एक जीव का अपहार किया जाए तो अनन्त उत्सर्पिणी
और अवसर्पिणी काल तक किये जाने पर भी उनका अपहार नहीं हो सकता; क्योंकि उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त की होती है । शेष पूर्ववत् ।
[शतक-२३ वर्ग-२ | [८३१] भगवन् ! लोही, नीह, थीह, थीभगा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सीउंढी और मुसुंढी इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलुकवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक (कहने चाहिए) । विशेष यह