Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 207
________________ २०६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद शीघ्र होता है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, जो सर्वद्वीपों में (आभ्यन्तर है,) यावत् जिसकी परिधि (तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से) कुछ विशेषाधिक है, उस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के चारों ओर कोई महर्द्धिक यावत् महासौख्य-सम्पन्न देव यावत्-'यह चक्कर लगा कर आता हूँ' यों कहकर तीन चुटकी बजाए उतने समय में, तीन वार चक्कर लगा कर आ जाए, ऐसी शीघ्र गति विद्याचारण की है । उसका इस प्रकार का शीघ्रगति का विषय कहा है । भगवन् ! विद्याचारण की तिरछी गति का विषय कितना कहा है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उड़ान से मानुषोत्तरपर्वत पर समवसरण करता है । फिर वहाँ चैत्यों (जिनालयो) की स्तुति करता है । तत्पश्चात् वहाँ से दूसरे उत्पात में नन्दीश्वरद्वीप में स्थिति करता है, फिर वहाँ चैत्यों (जिनालयो) की वन्दना (स्तुति) करता है, तत्पश्चात् वहाँ से (एक ही उत्पात में) वापस लौटता है और यहाँ आ जाता है । यहाँ आकर चैत्यवन्दन करता है । ___ भगवन् ! विद्याचारण की ऊर्ध्वगति का विषय कितना कहा गया है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उत्पात से नन्दनवन में समवसरण (स्थिति) करता है । वहाँ ठहर कर वह चैत्यों की वन्दना करता है । फिर वहाँ से दूसरे उत्पात से पण्डकवन में समवसरण करता है, वहाँ भी वह चैत्यों की वन्दना करता है । फिर वहाँ से वह लौटता है और वापस यहाँ आ जाता है । यहाँ आकर वह चैत्यों की वन्दना करता है । हे गौतम ! विद्याचारण मुनि की ऊर्ध्वगति का विषय ऐसा कहा गया है । यदि वह विद्याचारण मुनि उस स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये विना ही काल कर जाए तो उसको आराधना नहीं होती और यदि वह आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है तो उसको आराधना होती है । [८०२] भगवन् ! जंघाचारण को जंघाचारण क्यों कहते हैं ? गौतम ! अन्तररहित अट्ठम-अट्टम के तपश्चरण-पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को 'जंघाचारण' नामक लब्धि उत्पन्न होती है, इस कारण उसे 'जंघाचारण' कहते हैं । भगवन् ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्रगति का विषय कितना होता है ? गौतम ! समग्र वर्णन विद्याचारणवत् । विशेष यह है कि इक्कीस वार परिक्रमा करके शीघ्र वापस लौटकर आ जाता है । भगवन् ! जंघाचारण की तिरछी गति का विषय कितना है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उत्पात से रुचकवरद्वीप में समवसरण करता है, वहाँ चैत्य-वन्दना करता है । चैत्यों की स्तुति करके लौटते समय दूसरे उत्पात से नन्दीश्वरद्वीप में समवसरण करता है तथा वहाँ चैत्यवंदन करता है । वहाँ से लौटकर यहाँ आकर वह चैत्य-स्तुति करता है । ___भगवन् ! जंघाचारण की ऊर्ध्व-गति का विषय कितना कहा गया है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उत्पात में पण्डकवन में समवसरण करता है । फिर वहाँ ठहर कर चैत्यवंदन करता है । फिर वहाँ से लौटते हुए दूसरे उत्पात से नन्दनवन में समवसरण करता है । फिर वहाँ चैत्यवंदन करता है । वहाँ से वापस यहाँ आकर चैत्यवंदन करता है । यह जंघाचारण उस स्थान की आलोचना तथा प्रतिक्रमण किये बिना यदि काल कर जावे तो उसको आराधना नहीं होती । यदि वह उस प्रमादस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है तो उसको आराधना होती है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-२० उद्देशक-१० [८०३] भगवन् ! जीव सोपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं या निरुपक्रम-आयुष्य वाले

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