Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ भगवती - २०/-/१०/८०५ २०९ षट्कमर्जित सिद्धों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! अनेक षट्क और षट्क से समर्जित सिद्ध सबसे थोड़े हैं। उनसे अनेक षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं । उनसे एक षट्क और नो- षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं। उनसे षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं और उनसे भी नो- षट्कसमर्जित सिद्ध संख्यातगुणे हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव क्या द्वादशसमर्जित हैं, या नो- द्वादशसमर्जित हैं, अथवा द्वादश-नो- द्वादशसमर्जित हैं, या अनेक द्वादश और नो- द्वादशसमर्जित हैं ? गौतम ! नैरयिक द्वादश- समर्जित भी हैं और यावत् अनेक द्वादश और नो- द्वादश- समर्जित भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जो नैरयिक बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे द्वादशसमर्जित हैं । जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नो- द्वादशसमर्जित हैं । एक समय में बारह तथा जघन्य एक, दो, तीन तथा उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-नोद्वादशसमर्जित हैं । एक समय में अनेक बारह बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक - द्वादशसमर्जित हैं । एक समय में अनेक - बारह - बारह की संख्या में तथा जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश-नो- द्वादशसमर्जित हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमार तक कहना । भगवन् ! पृथ्वीकायिक द्वादश- समर्जित हैं, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पृथ्वीकायिक न तो द्वादशसमर्जित हैं, न नो- द्वादशसमर्जित हैं, न ही द्वादशसमर्जित-नो- द्वादशसमर्जित हैं, किन्तु वे अनेक - द्वादशसमर्जित भी हैं और अनेक द्वादश-नो- द्वादशसमर्जित भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक... यावत् समर्जित भी हैं ? जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक द्वादश-द्वादश की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादशसमर्जित हैं और जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक द्वादश तथा जघन्य एक, एवं उत्कृष्ट ग्यारह प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश और एक नो- द्वादश- समर्जित हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक तक कहना । सिद्धों तक नैरयिकों के समान समझना । भगवन् ! इन द्वादशसमर्जित यावत् अनेक द्वादश-नो- द्वादशसमर्जित नैरयिकों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! षट्कसमर्जित आदि जीवों के समान द्वादशसमर्जित आदि सभी जीवों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए । विशेष इतना है कि 'षट्क' के स्थान में 'द्वादश', ऐसा अभिलाप करना चाहिए । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! नैरयिक जीव चतुरशीति समर्जित हैं या नो- चतुरशीतिसमर्जित हैं, अथवा चतुरशीति-नो- चतुरशीतिसमर्जित हैं, या वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित हैं, अथवा अनेकचतुरशीति-नो- चतुरशीतिसमर्जित हैं ? गौतम ! नैरयिक चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, यावत् अनेकचतुरशीति-नो- चतुरशीति- समर्जित भी हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि यावत् समर्जित भी हैं ? गौतम ! जो नैरयिक चौरासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिसमर्जित हैं । जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । एक साथ, एक समय में चौरासी तथा जघन्य एक, दो, तीन, यावत् उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिनोचतुरशीति समर्जित हैं । जो नैरयिक एक साथ एक समय में अनेक चौरासी प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित हैं और एक-एक समय में अनेक चौरासी तथा जघन्य एक-दो-तीन उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीति-नो 4 14

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306