Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ २१० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद चतुरशीतिसमर्जित हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना । पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में दो पिछले भंग समझने चाहिए । विशेष यह कि यहाँ 'चौरासी' ऐसा कहना । इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिकों तक नैरयिकों के समान । भगवन् ! सिद्ध चतुरशीतिसमर्जित हैं, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! सिद्ध भगवान् चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा नो-चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, किन्तु वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित नहीं हैं, और न ही वे अनेक चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । भगवन् ! उपर्युक्त कथन का कारण क्या है ? गौतम ! जो सिद्ध एक साथ, एक समय में चौरासी संख्या में प्रवेश करते हैं वे चतुरशीतिसमर्जित हैं । जो सिद्ध एक समय में, जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट तेयासी तक प्रवेश करते हैं, वे नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । जो सिद्ध एक समय में एक साथ चौरासी और साथ ही जघन्य एक दो, तीन और उत्कृष्ट तेयासी तक प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिसमर्जित और नोचतुरशीतिसमर्जित हैं । भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित आदि नैरयिकों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चतुरशीतिसमर्जित नोचतुरशीतिसमर्जित इत्यादि विशिष्ट नैरयिकों का अल्पबहुत्व षट्कसमर्जित आदि के समान समझना और वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । विशेष यह है कि यहाँ 'षट्क' के स्थान में 'चतुरशीति' शब्द कहना । भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित यावत् सिद्धों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध हैं, उनसे चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं, उनसे नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक-२० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (शतक-२१) [८०६] शालि, कलाय, अलसी, बांस, इक्षु, दर्भ, अभ्र, तुलसी, इस प्रकार ये आठ वर्ग हैं । प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं । इस प्रकार कुल ८० उद्देशक हैं । शतक-२१ वर्ग-१ | उद्देशक-१ . [८०७] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! अब शालि, व्रीहि, गोधूम-(यावत्) जौ, जवजव, इन सब धान्यों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आ कर अथवा तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्ति-पद के अनुसार उपपात समझना चाहिए । विशेष यह है कि देवगति से आ कर ये मूलरूप में उत्पन्न नहीं होते हैं । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं । इनका अपहार उत्पल-उद्देशक के अनुसार है । भगवन ! इन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष-पृथक्त्व की । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं या अबन्धक ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक समान जानना चाहिए ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306