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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चतुरशीतिसमर्जित हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना ।
पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में दो पिछले भंग समझने चाहिए । विशेष यह कि यहाँ 'चौरासी' ऐसा कहना । इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक जानना । द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिकों तक नैरयिकों के समान । भगवन् ! सिद्ध चतुरशीतिसमर्जित हैं, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! सिद्ध भगवान् चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा नो-चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, किन्तु वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित नहीं हैं, और न ही वे अनेक चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । भगवन् ! उपर्युक्त कथन का कारण क्या है ? गौतम ! जो सिद्ध एक साथ, एक समय में चौरासी संख्या में प्रवेश करते हैं वे चतुरशीतिसमर्जित हैं । जो सिद्ध एक समय में, जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट तेयासी तक प्रवेश करते हैं, वे नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । जो सिद्ध एक समय में एक साथ चौरासी और साथ ही जघन्य एक दो, तीन और उत्कृष्ट तेयासी तक प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिसमर्जित और नोचतुरशीतिसमर्जित हैं । भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित आदि नैरयिकों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चतुरशीतिसमर्जित नोचतुरशीतिसमर्जित इत्यादि विशिष्ट नैरयिकों का अल्पबहुत्व षट्कसमर्जित आदि के समान समझना और वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना । विशेष यह है कि यहाँ 'षट्क' के स्थान में 'चतुरशीति' शब्द कहना । भगवन् ! चतुरशीतिसमर्जित यावत् सिद्धों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध हैं, उनसे चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं, उनसे नो-चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक-२० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-२१) [८०६] शालि, कलाय, अलसी, बांस, इक्षु, दर्भ, अभ्र, तुलसी, इस प्रकार ये आठ वर्ग हैं । प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं । इस प्रकार कुल ८० उद्देशक हैं ।
शतक-२१ वर्ग-१ |
उद्देशक-१ . [८०७] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! अब शालि, व्रीहि, गोधूम-(यावत्) जौ, जवजव, इन सब धान्यों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आ कर अथवा तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्ति-पद के अनुसार उपपात समझना चाहिए । विशेष यह है कि देवगति से आ कर ये मूलरूप में उत्पन्न नहीं होते हैं । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं । इनका अपहार उत्पल-उद्देशक के अनुसार है ।
भगवन ! इन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष-पृथक्त्व की । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं या अबन्धक ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक समान जानना चाहिए ।