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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! स्थिति की अपेक्षा से इसी कारण, हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि... यावत्- 'अल्पवेदना वाले हैं ।' भगवन् ! क्या असुरकुमार चरम भी हैं। और परम भी हैं ? हाँ, गौतम ! वे दोनों हैं, किन्तु विशेष यह है कि यहाँ पूर्वकथन से विपरीत कहना चाहिए । (जैसे कि - ) परम असुरकुमार अल्पकर्म वाले हैं और चरम असुरकुमार महाकर्म वाले हैं । शेष पूर्ववत् स्तनितकुमार - पर्यन्त इसी प्रकार जानना । पृथ्वीकायिको से लेकर मनुष्यों तक नैरयिकों के समान समझना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के सम्बन्ध में असुरकुमारों के समान कहना ।
[७६७] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की- निदा वेदना और अनिदा वेदना । भगवन् ! नैरयिक निदा वेदना वेदते हैं या अनिदा वेदना ? प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार वैमानिकों तक जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक- १९ उद्देशक - ६
[७६८] भगवन् ! द्वीप और समुद्र कहाँ हैं ? भगवन् ! द्वीप और समुद्र कितने हैं ? भगवन् ! द्वीप समुद्रों का आकार कैसा कहा गया है ? ( गौतम !) यहाँ जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति में, द्वीप - समुद्र - उद्देशक यावत् परिणाम, जीवों का उत्पाद और यावत् अनन्त बार तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक- १९ उद्देशक - ७
[७६९] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख भवनावास कहे गए हैं ? गौतम ! चौसठ लाख भवनावास हैं । भगवन् ! वे भवनावास किससे बने हुए हैं ? गौतम ! वे भवनावास रत्नमय हैं, स्वच्छ, श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप हैं । उनमें बहुत-से जीव और पुद्गल उत्पन्न होते हैं, विनष्ट होते हैं, च्यवते हैं और पुनः उत्पन्न होते हैं । वे भवन द्रव्यार्थिक रूप से शाश्वत हैं, किन्तु वर्णपर्यायों, यावत् स्पर्शपर्यायों की अपेक्षा से अशाश्वत हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारावासों त जानना चाहिए । भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों के भूमिगत नगरावास कितने लाख कहे गए हैं ? गौतम ! असंख्यात लाख नगरावास कहे गए हैं । भगवन् ! वाणव्यन्तरों के वे नगरावास किससे बने हुए हैं ? गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए ।
भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमानावास कितने लाख कहे गए हैं ? गौतम ! असंख्येय लाख कहे गए हैं । भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु से निर्मित हैं ? गौतम ! वे विमानावास सर्वस्फटिकरत्नमय हैं और स्वच्छ हैं; शेष पूर्ववत् । भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानवास कहे गए हैं ? गौतम ! बत्तीस लाख हैं । भगवन् ! वे विमानावास किस वस्तु के बने हुए हैं ? गौतम ! वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार अनुत्तरविमान तक कहना चाहिए । विशेष यह कि जहाँ जितने भवन या विमान हों, (उतने कहने चाहिए ) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
[७७०] भगवन् ! जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की - एकेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति । भगवन् ! एकेन्द्रियजीव - निर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पांच प्रकार की - पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय- जीवनिर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय