Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 161
________________ १६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं अथवा अप्रथम हैं ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । इस प्रकार अनेक वैमानिकों तक (जानना ।) भगवन् ! सभी सिद्ध जीव, सिद्धत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। भगवन् ! आहारकजीव, आहारकभाव से प्रथम है या अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है । इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना चाहिए । बहवचन में भी इसी प्रकार समझना चाहिए भगवन! अनाहारक जीव. अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! कदाचित् प्रथम होता है, कदाचित् अप्रथम होता है । भगवन् ! नैरयिक जीव, अनाहारकभाव से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह प्रथम नहीं, अप्रथम है । इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक प्रथम नहीं, अप्रथम जानना चाहिए । सिद्धजीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! अनेक अनाहारकजीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम भी हैं और अप्रथम भी हैं ? इसी प्रकार अनेक नैरयिकजीवों से लेकर अनेक वैमानिकों तक प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । सभी सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं । इसी प्रकार प्रत्येक दण्डक के विषय में इसी प्रकार पृच्छा कहना चाहिए। भवसिद्धिक जीव एकत्व-अनेकत्व दोनों प्रकार से आहारक जीव के समान प्रथम नहीं, अप्रथम है, इत्यादि कथन करना चाहिए । इसी प्रकार अभवसिद्धिक एक या अनेक जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए । भगवन् ! नो-भवसिद्धिक-नो-अभवसिद्धिक जीव नोभवसिद्धिकनो-अभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक सिद्धजीव नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? पूर्ववत् समझना चाहिए । इसी प्रकार (जीव और सिद्ध) दोनों के बहवचन-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी समझ लेने चाहिए । भगवन् ! संज्ञीजीव, संज्ञीभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है । इसी प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिक तक जानना । बहुवचन-सम्बन्धी भी इसी प्रकार जानना । असंज्ञीजीवों की एकवचन-बहुवचन-सम्बन्धी (वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए) । विशेष इतना है कि यह कथन वाणव्यन्तरों तक ही (जानना) । एक या अनेक नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्ध, नोसंज्ञी-नोअसंज्ञीभाव की अपेक्षा प्रथम है, अप्रथम नहीं है। भगवन् ! सलेश्यी जीव, सलेश्यभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! आहारकजीव के समान (वह अप्रथम है ।) बहुवचन की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए । कृष्णलेश्यी से लेकर शुक्ललेश्यी तक के विषय में भी इसी प्रकार जानना । विशेषता यह है कि जिस जीव के जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए । अलेश्यीजीव, मनुष्य और सिद्ध के सम्बन्ध में नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान (प्रथम) कहना चाहिए । __ भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव, सम्यग्दृष्टिभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह कदाचित् प्रथम होता है और कदाचित् अप्रथम होता है । इसी प्रकार एकेन्द्रियजीवों के सिवाय वैमानिक तक समझना चाहिए । सिद्धजीव प्रथम है, अप्रथम नहीं । बहुवचन से

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