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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्रकार का धर्म बतलाया । यथा-अगार-धर्म और अनगार-धर्म । पाँचवें स्वप्न में एक श्वेत महान् गोवर्ग देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर के (चार प्रकार का) संघ हुआ, यथा-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका ।।
छठे स्वप्न में एक कुसुमित पद्मसरोवर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की, यथा-भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । सातवें स्वप्न में हजारों तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनादि-अनन्त यावत् संसार-कान्तार को पार कर गए । आठवें स्वप्न में तेज से जाज्वल्यमान एक महान् दिवाकर को देख कर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को अनन्त, अनुत्तर, निरावरण निर्व्याघात, समग्र और प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ । नौवें स्वप्न में एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्यमणि के समान अपनी आंतों से चारों और आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ देखा, उसका फल यह कि देवलोक, असुरलोक और मनुष्यलोक में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी केवलज्ञान-दर्शन के धारक हैं, इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उदार कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक को प्राप्त हुए । दसवें स्वप्न में एक महान् मेरुपर्वत की मन्दर-चूलिका पर अपने आपको सिंहासन पर बैठे हुए देख कर जागृत हुए उसका फल यह कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने केवलज्ञानी होकर देवों, मनुष्यों और असुरों की परिषद् के मध्य में धर्मोपदेश दिया यावत् (धर्म) उपदर्शित किया ।
[६८०] कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान् अश्वपंक्ति, गजपंक्ति अथवा यावत् वृषभ-पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, और उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने ऐसा स्वप्न देख कर तुरन्त जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, समुद्र को दोनों ओर से छूती हुई, पूर्व से पश्चिम तक विस्तृत एक बड़ी रस्सी को देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे, अपने दोनों हाथों से उसे समेटता हुआ समेटे, फिर अनुभव करे कि मैंने स्वयं रस्सी को समेट लिया है, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, दोनों ओर लोकान्त को स्पर्श की हुई तथा पूर्व-पश्चिम लम्बी एक बड़ी स्स्सी को देखता हुआ देखे, उसे काटने का प्रयत्न करता हुआ काट डाले । (फिर) मैंने उसे काट दिया, ऐसा स्वयं अनुभव करे, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जाग जाए तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है।
कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक बड़े काले सूत को या सफेद सूत को देखता हुआ देखे, और उसके उलझे हुए पिण्ड को सुलझाता हुआ सुलझा देता है और मैंने उसे सुलझाया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र ही जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है । कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक बड़ी लोहराशि, तांबे की राशि, कथीर की राशि, अथवा शीशे की राशि देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे । उस पर चढ़ता हुआ चढ़े तथा अपने आपको चढ़ा हुआ माने । ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है । कोई