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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तक कहना । भगवन् ! अधःसप्तमपृथ्वी और अलोक का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन का है ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और ज्योतिष्क-विमानों का कितना अबाधा-अन्तर है ? गौतम ! ७९० योजन । भगवन् ! ज्योतिष्कविमानों और सौधर्म-ईशानकल्पों का अबाधा-अन्तर कितना है ? गौतम ! यावत् असंख्यात योजन है । भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प और सनत्कुमारमाहेन्द्रकल्पों का कितना अबाधान्तर है ? गौतम ! (पूर्ववत्) । भगवन् ! सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प
और ब्रह्मलोककल्प का अबाधान्तर कितना है ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प और लान्तककल्प के अबाधान्तर ? गौतम ! पूर्ववत् । भगवन् ! लान्तककल्प और महाशुक्र कल्प का अबाधान्तर ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार महाशुक्रकल्प और सहस्त्रारकल्प का, सहस्त्रारकल्प और आनत-प्राणतकल्पों का, आनत-प्राणतकल्पों और आरण-अच्युतकल्पों का, इसी प्रकार आरण-अच्युतकल्पों और ग्रैवेयक विमानों का, इसी प्रकार ग्रैवेयक विमानों और अनुत्तर विमानों का अबाधान्तर समझना।
भगवन् ! अनुत्तरविमानों और ईषत्प्रागभारा पृथ्वी का अबाधान्तर कितना है ? गौतम ! बारह योजन का है । भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी और अलोक का कितना अबाधान्तर है ? गौतम ! अबाधान्तर देशोन योजन का कहा गया है ।
[६२५] भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! यह शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ यह अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित-प्रातिहार्य होगा तथा इसका पीठ, लीपा-पोता हुआ एवं पूजनीय होगा । भगवन् ! वह शालवृक्ष वहाँ से मर कर कहाँ जाएगा और कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
भगवन् ! सूर्य के ताप से पीडित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह शाल-यष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ?, कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्याचल के पादमूल में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी । वहाँ वह अर्चित, वन्दित और पूजित होगी; यावत् उसका चबूतरा लीपापोता हुआ होगा और वह पूजनीय होगा | भगवन् ! वह वहाँ से काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम शालवृक्ष के समान जानना।
[६२६] भगवन् ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीडित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप के पुनः उत्पन्न होगी । वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी । भगवन् ! वह यहाँ से काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! पूर्ववत् जानना।
__उस काल, उस समय अम्बड पख्रिाजक के सात सौ शिष्य ग्रीष्म ऋतु के समय में विहार कर रहे थे, इत्यादि समस्त वर्णन औपपातिक सूत्रानुसार, यावत्-वे आराधक हुए।
[६२७] भगवन् ! बहुत-से लोग परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा