Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
View full book text
________________
**%epk***
आज सुधी एक पण मनुष्यतुं मरण थयुं न होय तेने घेरथी राख मंगावां, एटले आ बाळकने अमे जीवतो करीशुं," ते सांभळी राजाए पोताना सेवकाने नगरीमा तेकी राख लावदा मोनम्या. तेसो पानी की घेर घर फरी फरीने पाला || आव्या अने तेमणे राजाने का के-हे स्वामी! अमे दरेक घेर जइ तेवी राख मागी, त्यारे दरेक धरना माषसोए । जवाब आप्यो के-श्रा घरमा अमारी माता मरी गई छे, पिता मरी गया छे, बंधु मरी गयो छे, बहेन मरी गइ थे, स्त्री || | मरी मइ छ, भर्तार मरी गयो छे, विगैरे अनेकना मरण थयार्नु जणाव्युं. कोइ पण एवं घर न नीकम्प्यु के ज्यां मनुष्योना मरण थयां न होय." ते सांभळी राजार ब्राह्मण ने कह्यु के-" हे विप्र ! भा प्रमाणे ज्यारे दरेक घेर अनेकना मरण नीपजे छ त्यारे कोनो शोक करको ? माटे हे ब्रामण ! तुं शोक मूकी दे, रुदन न कर, आत्महित चितवन कर, तुं पण काळे करीने मरण पामीश." त्यारे विन फरीथी चोल्यो के–“हे देव ! आप जे कहो छो ते ई पण जाणुं छु, परंतु हमणां तो पुत्र रहित थवाथी मारा कुळनो क्षय थयो छे, तेथी.हुं अति दुःखी छु, श्राप अनाथना नाथ छो भने दुःखीना
। तथा आपनो प्रताप अस्खलित छ, तेथी मारा पुत्रने जीवाडी मने मनुष्यनी भिचा आपो." राजाए क" हे भद्र ! आनो प्रतिकार अशक्य छे. जेमां मंत्र : तंत्र, औषध के पराक्रम चाली शकता नथी एवा अदृश्य विधातारूप शत्रु उपर कयो विद्वान पराक्रम करी शके ? माटे हे विप्र! तुं शोक मूकी दे. परलोक हित कर. जे मूर्ख होय ते ज मरेलानो के नष्ट थयेलानो शोक करे. " ब्रामण वोल्यो-" हे महाराजा.! आप कहो छो ते सत्य छ, के पुत्रना मरणधी पण तेना पिताए शोक करवो नहीं. तो आपने पण असंभषित एवा शोकनुं कारण थ छे, तेथी आय पण शोक करशो
*********