Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

View full book text
Previous | Next

Page 776
________________ बमनी जेम जाणवो. २४४-२४५. अंजीव तथा जीवनो अधिकार समाप्त करे छे. संसारस्था य सिद्धा य, इइ जीवा विआहिआ। रूविणो चेवऽरूवी य, अजीवादुविहा वि अ ॥२४६॥ अर्थ-(संसारत्था य ) संसारमा रहेला-संसारी अने (सिद्धा य) सिद्ध (इइ ) ए बे प्रकारना ( जीवा ) जीवो (वित्राहिमा ) कहा. तथा (रूविणो चेव ) रूपी अने (अरूबी य ) अरूपी एम (दुविहा वि अ) पन्ने प्रकारना | (अजीवा ) अजीबो पण करा. २४६. आ प्रमाणे जीव अने अनीवर्नु स्वरूप सांभळीने तथा ते पर श्रद्धा करीने ज कृतार्थपणुं मानवानुं नथी, ते कहे छे.इइ जीवमजीवे अ, सुच्चा सदहिऊण य । सवनयाण अणुमए, रमिज्जा संजमे मुणी ॥२४७॥ __ अर्थ-(इइ) या प्रमाणे (जीवं यजीवे अ ) जीव तथा अजीवना स्वरूपने ( सुच्चा ) सांभळीने ( सदहिऊण य ) तथा सद्दहीने (मुणी ) साधुए ( सवनयाण ) ज्ञाननय अने क्रियानयनी अंतर्गत रहेला नैममादिक सर्व नयोने ( अणुमए ) संमत एवा ( संजमे ) चारित्रने विषे ( रमिजा) रमण करवू. २४७. ___संयममा रति करीने शुं करचुं ? ते कहे छे.तओ बहूणि वासाणि, सामाममणुपालिआ । इमेण कम्मजोगेणं, अप्पाणं संलिहे मुणी ॥ २४८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809