Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 779
________________ या प्रमाणे अनशन कर्या पछी अशुभ भावनामो त्याग कहे छ. कंदप्पमाभियोगं च, किबिसि मोहमासुरत्तं च । एश्राओ दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया "हुंति ॥ २५४ ॥ अर्थ (कंदर्य र कंदर्पभावना १, (आभिओगं च ) आभियोग्य भावना २, ( किन्विसिभ ) किल्विषभावना ३, मोहं ) मोहभावना ४ लासुरत्तं च ) प्रासुरभावना ५, (एआओ) श्रा पांच भावनाओ ( विराहिया ) विराधिका एटले सम्यग् ज्ञान, दर्शन भने गरित्रादिकनो भंग करनारी सती ( मरम्पम्मि) मरण समये भावी सती ( दुग्गईओ) दुर्गतिने शापार होवाथी दुर्गतिरूप (हुति ) थाय छे. एटले के मरण समये तेवी अशुभ भावना भाववाथी दुर्गति प्राप्त शाय छे. अर्थात् शुभ भावना भावत्राथी पद्गति पण थाय के एम सूचयवा माटे मरण समये एम कम्यु.२५४. ( तेधी अशुभ भावना न भाववी अने शुभ भावना भामी ए तात्पर्य समज.) । * मिच्छादसणरत्ता, सनिबाणा हिंसगा। इइ जे मरंति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ।। २५५ ।। ___अर्थ-(मिच्छादसणरता) मिथ्यादर्शनमां रागी थयेला, ( सनिप्राणाहु) नियाणा सहित अने ( हिंसगा) प्राणीनी हिंसा करनारा (इइ) आq कार्य करनारा (जे) जे (जीवा) जीवो ( मरंति) मरे छे, (तेसिं) तेस्रोने (पुण) * फरीने परभवमां (वोही) जिनधर्मनी प्रप्ति ( दुल्लहा ) दुर्लभ थाय छे. २५५.

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