Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 806
________________ किरिया पाळीये | एकखी ॥ इंद्रिय निज वश कीजीये, विकथा तजी मोष के || समिति गुप्ति आराधीये, परहरीये पुण दोष के || ० || २ || दश भेदे मुनिधर्म जे, ते आराधी जाणी के || प्रतिमा मुनि श्रावक तखी, वहो घरो शुभ जायी के || सू० ॥ ३ ॥ ज्ञाताधर्म तयी कथा, साधी आणो चित्त के ॥ बाबीश परिसह सांसदो, बोलो वाणी सत्य के ॥ सू० ॥ ४ ॥ जे जे थानके हम का, ते पाळो सुजगीश के ॥ अध्ययने एकत्रीशमे, बोले श्रीजगदीश के || सू० || ५ || विजयदेव गुरु पाटवी, विजयसिंह गुरु हीर के || शिष्य उदय कहे दोह ए, जागो गोयम बीर के || सू० || ६ || इति ॥ अथ द्वात्रिंश प्रमाद ठाम अध्ययन सज्झाय. ३२. कामिनी मूके न मोरी हाथ ॥ देश ॥ ६ वीर कहे वत्रीशमें रे, अध्ययने सुविचार || पाप हेतु ते परिहरो रे, जिम लहो भवजळ पार ॥ १ ॥ भविषण भाव धरो गुण राशि, जिम न पडो दुःख पाश ॥ भ० ॥ ए भकखी ॥ नाथ घरो रे मोह परिहरो रे, जीतो राग ने शेष | पंच इंद्रिय वश करो रे, म धरो विषय सदोष ॥ भ० ॥ २ ॥ तृणचारी बसतो बने रे, हरिण जुओ वेधाय || नाद तखे रसे वाहिया रे, जो लय लीखा थाय ॥ भ० ॥ ३ ॥ करिणी फरसे मोहीया रे, हाथीया चूके ठाम ॥ दरबारे आवी रही है, परवश सेवे गाम ॥ भ० ॥ ४ ॥ रूपे लुब्ध पतंगीयो है, दीवे होमे अंग || गंव तणे रस पंकजे रे, बंधन पामे भृंग ॥०॥५॥ श्रामिष रस व माछलो रे, एकमनो जो होय || देखो ततक्षण बापडो रे, वेदन पामे सोय ॥ म० ॥ ६ ॥ एकेकने परवशे रे, जो ए दुःखीया थाय ॥ तो पांचे परवश तशी रे, कहो गति के कहाय ॥ भ० ॥ ७ ॥ इम जाणी ए झीपतां रे, पामे

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