Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 809
________________ | अथ षट्त्रिंशत्चम जीवाजीवविभक्ताख्याध्ययन सज्झाय. 36. // ढाल धमालनी // सोहम स्वामी एम कहे रे, सुण जंबू ममगार // वीर जिनेश्वर भाखीयो रे, जीव अजीव विचार // 1 / परमारय परिचय कीजीये रे, लीजे प्रवचन सार // शुभ नाण अमीरस पीजीये रे, पामीजे भवपार / / प० // एमांकणी // जीव अजीर | दोइ वणेव्या रे, लोकालोक मझार // जीव भरूपी तेहमा रे, जाणो दोह मजीव प्रकार // 10 // 2 // पुदगळ रूपी ए कह्यो रे, आकाशादिक अरूप / / संक्षेपथी आजीवन रे, वर्णव्यु एह स्वरूप || प० // 3 // भेद सुण्या दोह जीवना रे, सिद्ध अने भववास / / भेद पनर तो सिद्धना रे, जेह मळ्या अलोक भाकाश // 50 // 4 / / पुढवी जळ जलणानिला रे, वण से वि ति चउ पंच // इंद्रिय माने भव तणी रे, जाणजो सूत्र प्रपंच // 50 // 5 // ए सवि भाव जिनेश्वरे रे, माख्या मचि हित काज / / सूधा सद्दहता थकां रे, पामीये अविचळ राज // 10 // 6 // विजयदेव सूरीश्वर रे, पद प्राभाविक सिंह / / विजयसिंह मुनिराजीयो रे, सुविहित गणधर लीह // 50 // 7 // तास नाम सुपसाउले रे, ए छत्रीश सज्झाय // | उदयविजय वाचक भणे रे, जेह थकी नव निधि धाय // 50 // 8 // // इति श्री उत्तराध्ययन पत्रिंशाध्ययनानां स्वाध्यायाः संपूर्णाः //

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