Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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अर्थ-(नयो ) त्यारपछी ( पहूखि ) घणा (पासारिण) वर्षों सुधी ( सामणं ) संयमने (अणुपालिया) पाळीने (मुणी ) मुनि ( इमेण ) आ (कम्मनोगेणं) क्रमना ब्यापारे करीने-तपना अनुष्ठाने करीने (अप्पाणं) पोताना आत्माने E] (संलिहे ) संलेखना को एटले द्रन्पथी अने भावथी कृश करे. २४८. ___ क्रमयोगने ज कहे छे.बारसेव उ वसाई, संलेहकोसिआ भवे । संवच्छरं मैडिझमिआ, छम्मासे अंजलिना ॥ २४९॥
अर्थ- ( उक्कोमिया ) उत्कृष्ट ( संलेहा) द्रव्यथी शरीन्नी अने भावथी कपायनी कुशतारूप संलेखना (बारसेच उ) बार ( वासाई) वएनी ( भये) होय ले.( मज्झिमिश्रा) मध्यम संलेखना (संवच्छर) एक चपेनी के (श्र)अने ( जहसिमा ) जघन्य संलेखना ( छम्मासे ) छ मासनी छे. २४६. ___हने उत्कृष्ट संलखनानो क्रमयोग कहे छे.all पढमे वासच उम्मि , विगईनिज्जू हणं करे । विइए वासचउक्कम्मि, विचित्तं तु तवं चरे ।। २५० ॥ १ अर्थ-(पढमे ) पहेला (वासचउक्कम्मि ) चार वर्षमा ( विगईनिजहणं ) विगयनो त्याग ( करे ) करे. ( बिइए )
बीजा ( वासचउकम्मि) चार वर्षमा ( विचित्तं तु) विचित्र प्रकारनो छट्ट, अट्ठम विगैरे ( तवं चर) तय करे. अहीं पहेला भाभी विचित्र तप करी पारणे नीवी करे अने बीजा चार वर्ष विचित्र तप करी पारणामां सर्व शुद्ध श्राहार वापरे
२५०.
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