Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 793
________________ E =3 अथ त्रयोदश चित्रसंभूति अध्ययन सज्झाय. १३. सकल मनोरथ पूरथे । ए देशी ।। चित्र अने संभूत ए, गजपुरमा विहरत ए, महंत ए, दोई मातंग मुनीश्वरा ए॥१॥एक दिन तेहने वंदे ए, चक्री नियम निछंद | ए, आणंदे ए, पटराणी पण वंदती ए ॥२॥ नारी रयण ते दीठी ए, काम अग्नि अंगीठी ए, पइठी ए, मनमा ते संभूतने ए | ॥३॥ चक्र तणुं नियाण ए, करे ते अजाण ए, जाण ए, चित्रे वार्यों नबि रहे. ए॥ ४॥ चित्र नियाणा विण शुद्ध ए, संभूतो | मुनि अविशुद्ध ए, सुर ऋद्धि ए, भघि चीजे दोइ पामीया ए || ५ ।। त्रीजे भने मुनि संभून ए, चक्री थयो नरपुर हुँत ए, धन्यपूत ए, चित्र पुस्मिताले थयो ए॥६॥ सुविहिवाने ते अनुसरे ए, अनुक्रमे संयम आदरे ए, एक दिन ते कपिलपुरे ए ॥ ७॥ पुर कपिले दोइ जणा ए, थया एकठा बहुगुणाः ए, अति घणा ए, चक्री कहे सुख भोगबो ए ॥ ८॥ चित्र कहे लीजे दीक्ष ए, ते न लहे चक्री शीख ए, सुपरिख ए, कर्म तणी जग एवी ए ६ || चको अपैठाण ए. मुनि निज पुण्य प्रमाण ए, जाण ए, उत्तम पदवी पामीयो ए॥१० |! विजयदेव पदधारक ए, विजयसिंह प्राभाविक ए, वाचक उदय ए, कहे गुण मुनितणा ए ॥ ११ ।। इति ॥ अथ चतुर्दश इषुकार कमलाध्ययन सज्झाय. १४. देवतणी रे बाणी सुणी रे।। ए देशी । देवतणी ऋद्धि भोगवी रे, पुर इपुकार मझार ॥ मोरा लाल रे ।। भृगु पुरोहित कुल भावीया रे, सुर दो शुभ

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