Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar

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Page 800
________________ चंपा ठाम ॥ स. ॥ स. ॥ ४ ॥ अनुक्रमे ताते परणावीयो, रुक्मिणी नारी सरूप ॥ स. ॥ एक दिन गोंख वीराजतो, dil देखे नगर स्वरूप || स०॥ स० ।। ५ ।। एक चोर नव दीठड़ो, तस कंठ कणयर माळ ।। स० ॥ गाढे बंधने बांधीयो, भो गवी दुःख असराळ || स. ॥ स० ॥ ६ ॥ ते देखी तस उपज्यो, मन वैराग्य अपार ।। स । समुद्रपाळ तब चितवे, जुमो | कठिन कर्म अधिकार || स. स. ॥७॥ मासाने पूछी लीये, संथम भार कुमार ।। स०॥ मुक्ति गयो मुनिराजीयो, सुख | पाम्यो श्रीकार ॥ स० स० ॥ ८॥ विजयदेव पट्टे जयो, विजयसिंह गणधार ॥ स०॥ शिष्य उदयवाचक कहे, मुनि गुण | मोहनगार ।। स०। स ॥ इति । अथ द्वाविंश रहनेमि अध्ययन सज्झाय. २२. __फागनी ढालनी वा सुरती महिनानी देशी॥ सौरिपुर अतिसुंदर, श्रीवसुदेव नरिंद ।। रोहणी देवकी राणी, राम केशव होइ नंद । समुद्रविजय वळी राजीयो, राणी | शिवादे कंत ॥ मन आनंदन नंदन, नेमीश्वर अरिहंत ॥ १ ॥ सहस अष्टोत्तर सुंदर, लक्षण अंग अभंग ॥ अनुक्रमे पामीयु * मोहन, यौवन नव रस रंग ॥ एक दिन तेह तणे कारण, गोपीनो भरतार ॥ उग्रसेन पासे मागे, राजुल राजकुमारी ॥ २ ॥ मनमलि मालती मालती, चालती गज गति गेली ।। मयणतणी सेना सजी, विकसी मोहनवेली ॥ वड सोभागिणी रागिणी, त्रिभुवन केरो सार ॥ जान लेइ ते परणवा, आवे नेम कुमार ॥ ३ ॥ चाले हलधर गिरिधर, बंध बंधव जोडी ॥ रवि शशी मंडल झीपता, दीपता होडा होडी ॥ शिव सीदीया साथीया, हाथीया मत्त गिरींद।। बंदी जन विरुदावळी, गोले

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